सृजन
सृजन
बीज जब धरा में है,
नवअंकुर भी फूटेगा।
किसलय के मध्य,
पुष्प पुनः महकेगा।
शीतल समीर जब,
दग्ध हृदय सहलाएगी।
आशा, शक्तिपुंज बन,
धरा पर बरस जायेगी।
जिंदगी की सुनहरी किरण,
तिमिर में न छिप सकेगी।
पाश में शक्ति नहीं,
वो बंध को भी बहा चलेगी।
धरती आसमां सब,
मृदुल निर्मल होंगे।
समस्त जीव जंतु,
मानव के सहचर होंगे।
निराशा के बादल,
खुद छंट जाएंगे।
प्रकृति भी इठलाएगी,
अमृत भी बरसाएगी।
निर्मल, शांत हृदय में,
गीत सृजन का गूजेंगा।
मानव आत्मशक्ति से,
नई गाथा लिख देगा।
