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Rajeshwar Mandal

Inspirational

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Rajeshwar Mandal

Inspirational

सृजन

सृजन

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 मैं न तो पेशेवर लेखक हूं

और न ही कवि

परंतु फुरसत के पलों में

अलंकार रूपी कलम से

शब्द को शब्दों से जोड़ता हूं

वाक्य को वाक्यों से जोड़ता हूं

और तुक में तुक मिलते ही

बन जाती है कविता 


मुझे नहीं मालूम मैंने क्या लिखा

परंतु मुझे अचरज होता है

जब कोई व्यक्ति टिप्पणी करता हैं

इस वाक्य के जरिए

कवि के कहने का आशय यह है कि ?

फिर मुझे आत्मबोध होता है सृजन का

और बैठ जाता हूं फिर से लिखने


काश !

आदमी और आदमी जब आपस में मिलते हैं

तब उस मिलन से कुछ  ऐसा ही सृजन होता

और लोग टिप्पणी करते

आदमी से आदमी के मिलने का आशय यह है कि -

हम सभी इंसान हैं

पर ऐसा नहीं होता 


आदमी से जब आदमी मिलता है

तो कुछ गुफ्तगू होती है

और रची जाती है साजिश क्षमतानुसार

देश तोड़ने की समाज तोड़ने की

बनायी जाती है योजना 

किसी के हंसते खेलते परिवार उजाड़ने की

यह कैसा मिलन है

और कैसी सृजनशीलता ?

पर उन्हें नहीं पता

इस घातक सृजनशीलता का परिणाम

जहां तक मैंने देखा है

नकारात्मक सृजन करने वाले लोग 

अंत में खुद लुप्त जाता हैं

और बिखर जाता है 

उनका अपना ही घर संसार।


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