सरहदें क्यों?
सरहदें क्यों?
सरहद पार कोई घर होगा,
वहां भी एक माँ होगी,
होगा एक परिवार,
हँसता खेलता होगा बचपन वहां।
शायद वहां कोई खुश होगा,
आज इस पार कोई मर गया,
किसी का बेटा था,
यह बचपन भी किसी घर खेला होगा।
माँ रोई, बाप बिलख रहा है,
कहीं खून कहीं आसूं बह रहा है,
माँ रोते रोते कोश रही है,
कोख उजड़ने वाले को गलिया रही है।
कहती है मारने वाला उस पार का था,
सरहद पार के हर इन्सान को लानत भेज रही है,
अनजाने में एक नफरत भर रही है,
'एक' के कारण सबसे नफरत कर रही है,
क्या मारने वाला सच में सरहद पार का था,
सरहद पार का देश कभी अपना ही था,
रिश्ते थे हमारे भी वहां ,
सुख दुःख के साथी थे वहां।
वहां कोई खुश नहीं होगा,
वहां भी लोग रो रहे होंगे,
किसी की मौत के ख़ुशी कैसे कोई माना सकता है,
कैसे कोई हंसेगा यह जान कर कोई रो रहा है।
चंद लोगों के स्वार्थ तले,
देश बाँट गया, बन गयी सरहदें,
वो कहते थे तरक्की होगी,
होगा अमन , होगी शांति।
विभाजन का आगाज ही नर संहार से हुआ,
मरने वाला कोई बाँटने वाला नहीं था,
वो कहीं बैठ तमाशा देख रहा होगा,
कैसे वो खुश रहा होगा, शायद ही वोह हंसा होगा|
हमने देखा, हमने झेला ,
मौत के मंजर से, खून की नदियों तक,
सब देखा और सोये रहे,
हमने क्यूँ उनसे नहीं पूछा,
सरहदें क्यूँ?