सरेआम
सरेआम
जब रंजिशें उबाल पर हो।
आंच हटा लेना ही ठीक होता है
जब रिश्तो में सीलन लगने लगे।
उन्हें ताप देना नया जीवन देता है।
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फिर से उजले रिश्तों का खिलखिलाना,
दिल को सुकून देता है।
किसी लम्हे के रूठने से।
रिश्तो की डोर छोड़ दिया नहीं करते।
सांस लेते रिश्तों से ताप लेकर ,
उन्हें सेंक लिया करते हैं।
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सहेजे थे जो कई आंसू आंखों में।
आज मन युद्धभूमि बन बैठा है।
हर क्षण उठती ज्वाला का ।
तमाशा सरेआम हो चला है ।