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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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सरेआम

सरेआम

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जब रंजिशें उबाल पर हो। 

आंच हटा लेना ही ठीक होता है 

जब रिश्तो में सीलन लगने लगे। 

उन्हें ताप देना नया जीवन देता है।

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फिर से उजले रिश्तों का खिलखिलाना,

 दिल को सुकून देता  है। 

किसी लम्हे के रूठने से।

  रिश्तो की डोर छोड़ दिया नहीं करते।

 सांस लेते रिश्तों से ताप लेकर ,

उन्हें सेंक लिया करते हैं।

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सहेजे थे जो कई आंसू आंखों में।

 आज मन युद्धभूमि बन बैठा है।

 हर क्षण उठती ज्वाला का ।

तमाशा सरेआम हो चला है ।


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