STORYMIRROR

Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Inspirational

4  

Sudhirkumarpannalal Pratibha

Abstract Inspirational

सर्दियों की शाम

सर्दियों की शाम

1 min
244

वो हाड़ को

कंपा देने वाली

ठंड हवाएं

वो चुपचाप

खिड़की के पास

बैठकर

ढलते सूरज को

निहार रहा था


और सोच रहा था

अपने प्रेम के बारे में

जिस तरह सूरज

बादलों के झुरमुट में

छुपकर शनै-शनै

अस्त हो रहा है


ठीक उसी प्रकार

उसका प्रेम भी

बेवफाई का

चादर ओढ़े

रंगीन दुनियां में

ओझल हो गई


और उसके

ओझल होते ही

उसके जीवन में

शाम हुआ और फिर

हमेशा के लिए

अंधेरा छा गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract