सर्दियों की शाम
सर्दियों की शाम
वो हाड़ को
कंपा देने वाली
ठंड हवाएं
वो चुपचाप
खिड़की के पास
बैठकर
ढलते सूरज को
निहार रहा था
और सोच रहा था
अपने प्रेम के बारे में
जिस तरह सूरज
बादलों के झुरमुट में
छुपकर शनै-शनै
अस्त हो रहा है
ठीक उसी प्रकार
उसका प्रेम भी
बेवफाई का
चादर ओढ़े
रंगीन दुनियां में
ओझल हो गई
और उसके
ओझल होते ही
उसके जीवन में
शाम हुआ और फिर
हमेशा के लिए
अंधेरा छा गया।