सपनो की दुनियां
सपनो की दुनियां
चल रे सजन वहाँ
जहाँ क्षितिज बनता है
ढलता सूरज आग कुन्ड का,
मंडप हो अम्बर का
पंछी कलरव हो शहनाई।
हो नया तराना जीवन का
चांद सूर्य के मिलन की बेला
हमसे भी कुछ कहता है
मंद मंद मकरंद सुवासित
उन्मुक्त पवन चलता है
चल रे सजन वहाँ
जहाँ क्षितिज बनता है
धरा गगन के मिलने से
रक्ताभ हुआ है नीलगगन
श्याम सलोने यौवन ने
चद्दर लज्जा का ओढ़ा है
सुमुखि सुलोचनि के नयनों से
अहसास मिलन का झरता है
सुन्दर ऊषा की किरणो से ,
नव जीवन का आस झलकता है
चल रे सजन वहाँ
जहाँ क्षितिज बनता है
सागर की लहरों पे बसेरा
दीप जले तारों का
इस कोरे कल्पित दुनिया में
ये जश्न है अपने जीवन का
ऊंची नीची लहरों पे माझी,
जहाँ जीवन नैया खेता है
चंदा खेले उस आंगन में
जहाँ इन्द्रधनुष बनता है
चल रे सजन वहाँ
जहाँ क्षितिज बनता है...।