मां के बागवां तक
मां के बागवां तक
मुझे पता.है मां,
कितनों की खिलखिलाती
मुस्काने ,
सपनों की गांठें बंधी है तेरी साड़ी
के छोरों पर।
जब जब खोलती है तू उन्हें
तेरे स्पर्शो का एक टुकड़ा
आकर ठहर जाता है मां
मेरी रूहों पर ,
कभी मुंडेर पर ,
कभी दरवज्जे पर।
खडी इन्तजार करती तेरी,
मंगल मनोकामनाएं
आकार ले लेती है ,
हम सबके लौट आने पर ,
लेकर चल देती है तू....
अपनी जप मालाओं मे
मेरे बे बुने सपने
बस घेरती रहती है
दुआओं से ,तमाम उम्र।
अपने प्रेम के फलक तक
तेरे आंसुओं मे मेरी,
खुशियों की दुआएँ ,
मेरी मुस्कान मे तेरी ,
जीने की तमन्नाएं ,
बस हम तक है
दुनियां तेरी मां,
आरम्भ से अन्त तक,
मै फूलों को सींचते सींचते
यू ही चली गयी थी ,
मां के बांगवा तक
मां के बांगवा तक।