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Ravindra Lalas

Abstract

4.8  

Ravindra Lalas

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सपनो की चौखट पे, किस्मत की आहट?

सपनो की चौखट पे, किस्मत की आहट?

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हो सपनो की चौखट पे,

किस्मत की आहट?

ना ऐसी फितरत हो,

ना ऐसी चाहत,


हंसी जो बसती हो,

होठो की मस्ती हो,

ऑखो में सपने हों,

करने जो अपने हों,


किस्मत तो खेलेगी,

उम्मीदे झेलेगी,

मन की मुरादें,

चैन भी लेलेगी,


जो गम का कोई बादल हो,

जब हौसले घायल हो,

कभी धुंधली सी राहो पे,

तनहा सा कोई पल हो?


हंसने की चाहत हो,

जिंदा इबादत हो,

बस मन को बहलादे,

एसी एक आदत हो,


कभी शिरकत, कभी फुर्सत हो,

रंगो की रचना में ॠचा की रौनक हो,

कभी फुर्कत, कभी कुर्बत हो,

बस कहने को किस्मत हो,


पर सपनो की चौखट पे,

किस्मत की आहट?

ना ऐसी फितरत हो,

ना ऐसी चाहत।


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