सपने
सपने
बंद पलकों की दुनियां में,
प्यारी सी नींद के आगोश में,
छोड़कर सारे रोज़ाना विचार,
बस आराम का समय बेहिसाब,
ऐसी एक दुनिया
ऐसा एक समय,
बस स्वयं का समय,
और स्वयं की सुंदर नींद,
पलकों के साए में,
अंगड़ाइयां लेते कुछ एहसास,
ज़िन्दगी में आते जाते,
और जेहेन में समाए हुए किस्से,
मिल - जुलकर जाने क्या शरारतें करते हैं,
और नींद में एक दूसरी दुनियां में ले जाते हैं,
सपनों की वो निराली दुनियां,
कभी ख़ुशी तो कभी ग़म देने वाली कहानियां,
पलकें खुलते ही कभी प्यारा सा सुकून,
जो सुबह को बस खुशनुमा कर जाए,
पलकें खुलते ही कभी वो ग़म,
जो आंखों को नम कर जाए,
कभी बेवजह के विचार दे जाए,
कभी विचार करने पर मजबूर कर जाए,
जाने भी दो यारों,आखिर वो सपने ही तो है,
जो हमारी ही पलकों में पलते हैं,
और सुबह होते ही निकल जाते है।
