सपने
सपने
यूँही नहीं पूरे होते सपने
किसी मिट्टी की तरह कुटकर, पिसकर
छनकर, गलकर, गुंथकर, मिटकर
समय चक्र के चाक पर चहुँ ओर घूमकर
वक्त के थपेड़ों सी गर्म आँच पर
तपकर निखरकर ही पूरे होते हैं सपने
तू है यदि अडिग सजग
कर न देर, धर डग पर डग
कल्पना की उड़ान से निकल
पाँव हकीकत की धरा पे धर
तज अतीत भविष्य की ओर चल
तभी हो पाएंगें पूरे सपने
संग्रह सफलताओं का करता चल
ध्यान लक्ष्य पर धरता चल
विफलताओं की न कर फिकर
हो भयभीत न ठहर उधर
संकल्पों से न तू मुकर
तभी हो सकते हैं पूरे सपने
