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Pawan Kumar

Abstract

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Pawan Kumar

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सपने टूट जाते हैं

सपने टूट जाते हैं

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क्या सपने देखे सपने टूट जाते हैं

जिनके भी बांहें पकड़ते हैं वो अक्सर

बीच में ही छूट जाते हैं अब तो अपनों


पर भी भरोसा रहा नहीं क्यूंकि वो भी

रेत की तरह हाथों से फिसल जाते हैं


अब क्या सपने देखे सपने टूट जाते हैं

अक्सर पुछते हैं उनके बारे मैं फिर डर

जाता हूं याद तो वो हमेशा रहती हैं


कोइ पूछता है तो एक हसीन ख़वाब

कहकर चला जाता हूं वैसे भी क्या याद

करू सपने देखे सपने टूट जाते हैं।


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