सोना बनने के लिए
सोना बनने के लिए
सोना बनने के लिए
जिन्दगी भर
कड़ी धूप की
पसीने छुड़ाती
मेहनत और बलिदान की
अग्नि में
तपना पड़ता है
मिट्टी ही बने रहना
पड़ता है
एक पल को भी
नजर उठाई और
आवाज में अकड़ आई तो
सोने का भाव एकदम से
निम्नतम स्तर पर
लुढ़क जाता है और
शून्य हो जाता है
रेत के कणों सा चमकता तो
रहता है पर
मिट्टी में मिल जाता है
हर किसी को नजर नहीं आता है
हर किसी के बस पांव के नीचे
आता है
किसी को ठोकर लगे तो
उसे कोई
स्वावलम्बी बनने की नसीहत नहीं देता
अपितु उसकी तरफ बस धूल
उड़ाता है
उसके तन को मैला करता है
आंखों में धूल भरता है और
उसे शारीरिक और मानसिक कष्ट ही
देता है।