संवेदनाओं का गणित
संवेदनाओं का गणित
दुनिया को हमने अपने और परायों में बाँट रखा है
रिश्तों के चक्कर में इतनी रेल पेल और धक्का है
दूसरे का बच्चा रोये तो सर में दर्द होता है
अपना बच्चा रोता है तो दिल भी रोता है
हमारी संवेदनाएं रिश्तों बदलते ही कई बार
अचानक बदल जाती हैं
जैसे अचानक चुनाव के बाद अक्सर
एक दम से सरकार बदल जाती है
जब रिश्ता कुछ और हो तो सारा गणित ही
बदल जाता है
फायदा होने की जगह पर भी नुकसान
दिख जाता है
रोने वाले उदहारण में अगर रिश्ता बच्चे की
जगह पत्नी का हो जाता है
तो फिर संवेदनाओं का गणित ही
पूरी तरह से उल्टा हो जाता है
दूसरे की बीबी रोये तो दिल भी रोता है
अपनी बीबी रोती है तो सर में दर्द होता है