Arun Gode

Abstract Inspirational

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Arun Gode

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संत ज्ञानेश्र्वर.

संत ज्ञानेश्र्वर.

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महाराष्ट्र के भूमि को प्रकृति का अद्भुत दान,  

संतों के जन्म का वह रहा सदियों से पुण्य स्थान।

साध्ययोगी संत ज्ञानेश्र्वर ने बढ़ाई उसकी आन –बान –शान, 

आपेगांव पैठण में विठ्ठल –रुकमणीने जन्मी अनमोल संतान।   


संत के पिता ने पत्नी आज्ञा से त्यागा था गृहस्थ जीवन, 

लेकिन गुरु आज्ञा से पुनर स्थापित किया सांसारिक जीवन।   

निवृति ,ज्ञानदेव, सोपान ,मुक्ताबाई थी वो सन्यासी संतान ,

समाज के ठेकेदारों ने बहिष्कृत किया था परिवार जबरन।  

 

बहिष्कृत परिवार को सहना पड़ा पल –पल घोर अपमान, 

माता –पिता सह नहीं पाएँ थे प्रताड़ित बहिष्कृत जीवन।   

कष्टदायी, अपमानित जीवन से उन्होंने स्वीकारा था मरण,

धर्म के ठेकेदारों ने चारों संतानों का जीवन बनाया था कठिन।  


जेष्ठ भ्राता ने ली थी गुरु गैनीनाथ योगमार्ग की दीक्षा ग्रहण, 

साध्ययोगी निवृत्ती नाथ ही बने थे ज्ञानेश्र्वर के सदगुरु यकीनन।   

संत ज्ञानेश्र्वर हमेशा रहा कराते थे पूर्ण कृष्ण भक्ति में लीन, 

भागवत गीता पर टीका उन का भक्तों पर प्रथम संबोधन।  


उनके उपदेश और ज्ञान गीता से बढ़ी उनकी धार्मिक पहचान, 

अपमानित ,प्रताड़ित संतानों ने पंडितों से किया शुद्धि पत्र ग्रहण।

समता, समभाव उपदेशों का अपने भूमि भ्रमण में किया था प्रसारण,   

ज्ञानेश्र्वरी, अमृतानुभाव योगवसिष्ठ टीका, चांगदेवपासष्टी है लिखाण।


भगवत गीता का मातृभाषा मराठी में सर्वोत्तम लिखाण, 

पसाय दान, अभंग है विख्यात मातृभाषा में अन्य लिखाण।  

सांसारिक मोह–माया को छोड़कर त्याग दिया था अनमोल जीवन,  

केवलमात्र इक्कीस साल में आलंदी में जीवित समाधि की थी ग्रहण।  



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