संस्कृति से सींचे नई पौध
संस्कृति से सींचे नई पौध
संस्कृति अपने भारत देश की, है बड़ी महान ।
गुण इसके जग पूजता , गुणियों की है खान ।।
राम कृष्ण जन्मे यहाॅं , लिए मनुज अवतार ।
महिमा उनकी है बड़ी, जग गाता नित गान ।।
हो रहा था राजतिलक, छोड़ मिला वनवास ।
शिकन एक आई नहीं , तज सिंहासन आस।।
वन के पथ पर चल पड़े, प्रथम कर्तव्य मान ।
प्राण जाए पर वचन नहीं ,सीखे पीढ़ी काश ।।
बड़ों का अभिवादन है , वृद्धों का सम्मान ।
छोटों को सहेज रखें , देकर नित ज्ञान ।।
गरिमामयी&n
bsp;संस्कृति से, सींचते नई पौध ।
बड़ा बड़ा ही है यहाॅं , लघु को देते मान ।।
गुरु चरणों में बैठकर , होते हम समृद्ध ।
मीठे बोल वचन रखो, होना कभी न क्रुद्ध ।।
निज जड़ों से रहो जुड़े , इसमें है कल्याण ।
वेद पुराण पढ़ो सदा , सभी आबाल -वृद्ध ।।
वेद पुराण ग्रंथ सभी, भरे ज्ञान के हैं भंडार ।
इनको पढ़कर आदि से , सीख रहा संसार ।।
आध्यात्मिकता देश की , बनी रही सिरमौर ।
भौतिकता डूबें नहीं , भारत संस्कृति सार ।।