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Mahak Singh

Tragedy

5.0  

Mahak Singh

Tragedy

संस्कृति का लोप

संस्कृति का लोप

1 min
372


नैतिकता का हुआ पतन और मानवता भी खोई,

देख धरा भी बर्बादी को मन ही मन में रोई।

राजनीति तो नोट - नीति से वोट - नीति की हो ली,

देश प्रेम अब कुर्सी खातिर हो गईं अदला बदली।

कर्तव्य निष्ठा सहनशीलता कहीं गई अब खोई,

देख धरा----।


राष्ट्र संघ का देख ढंग अब सफ़ेद रंग की हो ली,

निर्बल जाति सबल के आगे कभी भी कुछ ना बोली।

मानव का कोई मोल नहीं है कहता क्यूं न कोई

देख धरा-----।


बेपरवाह बेखौफ हुआ है आतंकवादी टोला,

कहीं चलती बंदूक दनादन कहीं पे बम का गोला,

नहीं खोफ अब विश्व विधाता ईश्वर का भी कोई।

देख धरा,-----।


भ्रष्टाचारी लूटपाट औऱ अत्याचार गर्म है,

रिश्ते नाते मटमैले अब किसको आज शर्म है।

महक नहीं अब किसी क्षेत्र में कहता क्यूं न कोई,

देख धरा-----।


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