संस्कृति का लोप
संस्कृति का लोप
नैतिकता का हुआ पतन और मानवता भी खोई,
देख धरा भी बर्बादी को मन ही मन में रोई।
राजनीति तो नोट - नीति से वोट - नीति की हो ली,
देश प्रेम अब कुर्सी खातिर हो गईं अदला बदली।
कर्तव्य निष्ठा सहनशीलता कहीं गई अब खोई,
देख धरा----।
राष्ट्र संघ का देख ढंग अब सफ़ेद रंग की हो ली,
निर्बल जाति सबल के आगे कभी भी कुछ ना बोली।
मानव का कोई मोल नहीं है कहता क्यूं न कोई
देख धरा-----।
बेपरवाह बेखौफ हुआ है आतंकवादी टोला,
कहीं चलती बंदूक दनादन कहीं पे बम का गोला,
नहीं खोफ अब विश्व विधाता ईश्वर का भी कोई।
देख धरा,-----।
भ्रष्टाचारी लूटपाट औऱ अत्याचार गर्म है,
रिश्ते नाते मटमैले अब किसको आज शर्म है।
महक नहीं अब किसी क्षेत्र में कहता क्यूं न कोई,
देख धरा-----।