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Mahak Singh

Tragedy

5.0  

Mahak Singh

Tragedy

संस्क्रति का लोप-2

संस्क्रति का लोप-2

1 min
291


है कौन जिसने जिंदगी में घूस खाई ना,

मेरे वतन में बिक रहा है माल चाईना।

तीज हो त्यौहार कोई अपने ही नहीं

होली या दिवाली कोई अपने ही नहीं,

चलते हैं त्योहार यहां वेलेंटाइन डे,

फ्रेंडशिप डे हो या फिर गुड फ्राइडे।

होली की हुंकार यहां देती सुनाई ना,

मेरे वतन में---।


मैट्रो हो या सेंट्रो कोई अपनी ही नही,

एरोप्लेन या हो मिशाइल अपने ही नही।

बोफोर्स हो ताबूत कोई अपने ही नहीं,

तेल हो खेल कोई अपने ही नही।

तुरही हो या शंखनाद देता सुनाई ना,

मेरे वतन में---।


फिल्मी गीत सुन रहे जहां भाव कोई नहीं,

कहानी का जिसमे कोई आदि अंत नहीं।

विदेशी गाने सुन रहे जो अपने भी नही,

राम गुण के भजन कोई सुनते ही नहीं।

लोक गीत की धुन यहाँ देती सुनाई ना,

मेरे वतन में----।


पॉल्यूशन घर में खुद पाल रहे हैं,

हिट लाये फिट से जीव मार रहे हैं।

माल इनके घर में देशी मिलता ही नही,

तेल, घी देशी इनको पचता ही नहीं।

महक घर में किसी के आज पाई ना,

मेरे वतन में-----।


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