संस्कारों की बेड़ियां
संस्कारों की बेड़ियां
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संस्कारों की बेड़ियाँ बंधी है, जिसमें केवल लड़कियाँ जकड़ी हैं।
अपने पहनावे का ख्याल रखना, लड़की हो तुम हमारी
लाज रखना।
घूरते हैं अगर तुम्हें लड़के, तो चलना तुम जरा संभल के।
उनका कोई कुछ नहीं सकता बिगाड़, समाज उठाएगा सिर्फ
तुम पर सवाल।
बात करे कोई अजनबी लड़की से, सब देखते उसे शक की
नज़रों से।
देर से आए अगर लड़का घर पर,किसी को फर्क नहीं पड़ता है
उस पर।
लेकिन कभी देर हो गई लड़की से, सफाई मांगी जाती है उससे।
पूछती हूं समाज से एक सवाल, लड़की होना अभिमान है या
अभिशाप??
क्यों मान सम्मान की रक्षा का भार, केवल लड़की पर ही थोपी
जाती है।
चाहे गलत हुआ हो उसके साथ, दोषी लड़की ही ठहराई जाती है।
लड़कों को भी दें अच्छे संस्कार, सिखाए उन्हें हमेशा एक बात।
मिले अगर कोई अकेली लड़की, डरी हुई और सहमी हुई सी।
खड़े हो जाना उसके साथ, भरोसा दिलाना सुरक्षित हो आप।
अगर गुनहगार का देते हो साथ, उससे बड़ा गुनहगार हो आप।
बदले अपने नज़रिए और सोच को, कमजोर कड़ी ना समझें
लड़की को।
लड़का हो या हो लड़की, दोनों की इज़्ज़त एक समान।
संस्कार दें दोनों को अच्छे, एक दूसरे का करें सम्मान।
ना गलत में दें किसी का साथ, ना ही गलत होने दें किसी के साथ।
लड़की होती है किस्मत वालों को, ना समझो उसे अभिशाप।
किसी घर का अभिमान है बेटी, जीवन पर है उसका भी अधिकार।