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swati sourabh

Inspirational

4.9  

swati sourabh

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रूठी कलम

रूठी कलम

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आज कोरे कागज पर

इन्सानों की अच्छाई पर

लिखने की इच्छा हुई।

कागज सहम- सा गया और

कलम भी थम- सी गई।


 किसी कचड़े के डब्बे में

 हमें फेंक देना

लेकिन हैवानों को इंसानों

 का नाम ना देना।


थक गई हूं हर रोज़ निर्भया की

कहानी लिख- लिख कर।

थक गई हूं निर्मम हत्याओं की

 सुनामी लिख- लिख कर।


हर रोज़ निर्दोषों के खून से 

भीग जाता हूं

सच जान कर भी कहां पूरा सच

 बता पाता हूं ?


अख़बार के कोने- कोने में

 हैवानियत भरी हुई है

अब इन्सानों में कहां 

इंसानियत बची हुई है ?


हर दिन मर रही इंसानियत है

मानवों में भर गई हैवानियत है।


 फिर कागज सिकुड़ सा गया

मुझसे कई सवाल कर गया।


मेरी लेखनी भी मुझसे रूठ- सी गई

साथ नहीं देना चाहती टूट- सी गई।


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