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swati sourabh

Abstract Tragedy Inspirational

4.5  

swati sourabh

Abstract Tragedy Inspirational

उम्मीद के दीप

उम्मीद के दीप

1 min
307


हाथों में मिट्टी के दीप,

आंखों में लिए उम्मीद,

ढूंढ़ती वो नज़र,

मनेगी दीवाली मेरे भी घर,

कोई खरीद ले मेरे दीये अगर,

सब देख पलट जाते मगर।


दीये खरीद लो बाबू जी,

गरीब के घर भी जलेगा दीप,

मानने के लिए ये त्योहार,

कर रहे होंगे बच्चे इंतज़ार,

ना आज मानूंगा हार,

खाली हाथ ना घर जाऊंगा आज।


मेरे बच्चों ना होना निराश,

उम्मीदों का ही तो है ये त्योहार,

हमारे घर भी जलेगा प्रकाश,

दूर होगा जरूर अंधकार,

खुद को दे रहा था दिलासा,

जगा रहा था मन में आशा।


सुबह से अब हो गई शाम,

हर कोशिश हो गई नाकाम,

अब हिम्मत रखना ना आसान,

हे प्रभु! हो जा मेहरबान,

घर कैसे आज जाऊंगा,

आज क्या बहाने बनाऊंगा।


मासूमों का टूट जाएगा दिल,

भीगी नज़रें ना पाएंगी मिल,

कितने में मुझे दोगे दीप?

जग उठी दिल में उम्मीद,

धुंधली नजर से देखा उसकी ओर,

शायद भगवान का ही कोई रूप था वो।


खरीद लिया सारे दीप,

दिल से निकली दुआएं भी,

ले गया अपने संग,

दे गया उनको उमंग,

एक दीप खरीदें उनके भी,

जिनकी उम्मीद टिकी है हम पर ही।



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