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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract

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मानव सिंह राणा 'सुओम'

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संकट के बादल

संकट के बादल

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ये बादल जो मेरे घर पर यूँ छाए हैं।

संकट के नहीं, मस्तियों के साये हैं।।


तूने तो कोशिश कर ली , जो करनी थी।

पर मेरा भाग्य है, जो खुशियाँ पाये हैं।।


तूने सच पर झूठ का लबादा उढ़ा दिया।

हम सच को अभी भी जिता लाये हैं।।


तूने शूलों को भेजा, रास्ते में हमारे तो क्या?

गीत बनाकर वही , हमने भी गुनगुनाये हैं।।


तूने हर शै को कहा बुरा, सुओम के साथ।

पर देहत्त्व है ,जो अभी भी बचा लाये हैं।।


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