STORYMIRROR

संजय असवाल "नूतन"

Abstract Classics Others

4.5  

संजय असवाल "नूतन"

Abstract Classics Others

संघर्ष भरे दिन..!

संघर्ष भरे दिन..!

1 min
22

याद है वो छोटा सा घर जिसमें

एक दीप आशा बनकर जगमगाता था,

उम्मीदें पलकों में चुपके से आकर

सपनों को रोज हमारे सजाता था।


दिन भर हम करते थे मेहनत 

रातें पढ़ाई में गुजर जाती थी,

कभी खाली पेट भी जागते हम  

कभी रात आंखों में गुजर जाती थी।


परिवार की जिम्मेदारी कांधों पर 

पर हौसले पर्वत से ऊंचे थे,

हर नाकामी को दिल में सजाकर

हम मेहनत से किस्मत को बोते थे।


खाली जेबों को देखते जब भी

रोते थे हम कई कई रात,

आंखों में रख फिर जलती उम्मीदें 

हम थाम लेते थे अपने जज्बात।


पैरों में टूटी चप्पल होती हमारी

पर दिल में हमारे उबाल था,

पथरीली राहों पर चलकर ही हमने

करना एक दिन धमाल था।


पसीने की बूंदे कहती हमसे 

मंजिल तक बढ़ते जाना है,

हौसलों की लौ जलाए रखना

अभी तो दुनियां को दिखलाना है।


आज जो चेहरे पर मुस्कान हमारे

वो रातों को नींद गंवा कर पाई है,

हर ठोकर में सीखा हमने 

गिर गिरकर हमने ये राह बनाई है।


सीख यही, अंधेरा जितना गहरा हो

कल भविष्य उसका सुनहरा होगा,

जो मेहनत करेगा दिल से अपने

दिन उसका ही कल बेहतर होगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract