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Rekha gupta

Abstract

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Rekha gupta

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समय

समय

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बहती नदिया की धारा सा,

समय अविराम बहता जाता है,

कुछ पा लिया तो अच्छा,

वरना बुरा कहलाता है।


समय का खेल बड़ा निराला है यारो,

कभी निष्ठुर कभी बलवान बन जाता है,

समय की चाल को समझो तो पल पल,

खुशियो का सावन बन जाता है।


सुन्दर स्वप्निल अतीत भी,

समय की धारा मे बह जाता है,

बीता पल और बीता कल,

कब किसका वापस आता है।


समय हर दर्द को भुला,

जीना सिखला जाता है,

आँसुओं के बीच भी हमें,

हँसना सिखला जाता है।


समय फिसलती रेत है,

छूट गया तो फिर कभी,

किसी के हाथ नहीं आता है,

मात्र पछतावा रह जाता है।


इस समय की लीला को अगर,

समय पर समझ लिया तो

भूत, भविष्य और वर्तमान,

सब सुन्दर और स्वप्निल हो जाता है।


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