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अच्युतं केशवं

Abstract

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अच्युतं केशवं

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समय की घड़ी

समय की घड़ी

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समय

के भीतर हैं सब

हम तुम

ये पक्षी पेड़ ताल और पहाड़

समय के पार कोई नहीं

समय की घड़ी में

रेत फिसल रही है

शनै शनै

और

समय खुद फिसल रहा है

हमारी मुठ्ठी से

रेत की तरह

इसी बीच

खबर है कि

धरती धीमी हो गई है

चौबीस सेकंड

यानि

सूरज की रोशनी

इतनी देर से आयेगी धरती तक

पल छिन दिन माह साल

सबकी माप बदलेगी

यह बदलाव अभी दिखेगा नहीं

जरूरी नहीं कि

बदलाव तुरंत दीख जाए

पर

बदलाव शाश्र्वत है

एक दिन मंद होती होती

रुक जाएगी धरती

वह भी नहीं दीखेगा

कोई होगा ही नहीं

देखने वाला।


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