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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Inspirational

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Inspirational

समुन्द्र सा मंथन

समुन्द्र सा मंथन

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समुद्र सा मंथन ह्रदय मंथन कर बैठे हैं,

संकल्प अमृत लक्ष्य विष पी बैठे हैं।


अनमोल नहीं तनधन अनमोल मन हमारी वाणी है,

जग तन मन धन से खुशहाली पाये नीति हमारी है।


उठापटक चलेगी तब यह बात समझ में आयेगी,

कौन है सच्चा कौन है झूठा उल्फत यह बतलायेगी।


ऐसा ही समझ लो शब्द जोड़ता हूं,

देश समाज की पीड़ा बंजर देख जोतता हूं।


शब्द हल खेत कुदाल बन जाते हैं,

स्याही के जज्बात इंसान बन जाते हैं।


बात से बात बहुत दूर तक जाती है,

जब विचारनीति आपसे मिल जाती है।


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