स्मृतियाँ/खट्टी मीठी यादें
स्मृतियाँ/खट्टी मीठी यादें
रात को सोते ही पुरानी स्मृतियाँ दस्तक देती है
आँखों के बंद पटल पर पुराने नाटक खेलती है
दिखाती है रोज मुझको नये-नये मंजर
यादें वो अहसास है जो हर पल को बाँधे रखती है
जीवन की कुछ खट्टी-मीठी बातें
आज यादें बनकर मेरे जहन में गूँजती है
बचपन में पापा के कंधों पर बैठकर मेला देखना
तो कभी पापा की डांट पड़ने पर माँ के आँचल में छिप जाना
भाई-बहन से नोंक-झोंक,रूठना औऱ फिर एक पल में मान जाना
कितना मासूम था वो बचपन का जमाना
ना जाने कहाँ छूट गए वो प्यार भरे तराने
बस यादों में छिप गए मेरे बचपन के फ़साने
दादी माँ की डांट से खुद पर झुंझलाना
फिर सब कुछ भुलाकर सखियों के साथ खूब बतियाना
आज भी उन स्मृतियों से मेरे मन में उमंगे उठती है
पुरानी यादें आज भी मेरी पलकों को भिगोती है
पिता के घर से डोली में ससुराल में जाना
औऱ फिर उस घर को ही अपना मान लेना
अपने सपनों को साकार करने में अपनों को भूल जाना
अपने अंश को बढ़ाने में खुद को पालना बना लेना
यादें ही तो जीवन है,जो दिल से दिल के तार को जोड़ती है
कभी पंख लगाकर आसमान को छूती है तो
कभी आँसू बनकर आंखों से छलकती है
एक झलक में ही वो समय को बदल देती है
जब भी दस्तक देती है होठों पर मुस्कान
और आँखों को नम कर देती है
यादें तो अहसास है,जो जिंदगी को थामे रखती है।
