समझ न पाया इंसान
समझ न पाया इंसान
जैविक और अजैविक घटक से संभव सृष्टि रचना,
गर रब की मेहरबानी काे समज न पाया इंसान।
आहारशृंखला के तहत पर्यावरण है संतुलित,
प्रकृति के नियम के मायने काे समझ न पाया इंसान।
धरती, वायु,पर्वत,पानी है पर्यावरण के अंग,
लेकिन प्रकृति की जान है वृक्ष ये समझ न पाया इंसान।
स्वच्छ वायु, शुद्ध जल, ओजाेन परत पूर्ण आकाश,
बिना वृक्ष निषेध है श्वास ये समझ न पाया इंसान।
पर्यावरण प्रदूषण करण संकट में है मानव का अस्तित्व,
पर्यावरण संरक्षण है धर्म हमारा ये समझ न पाया इंसान।
आओ मिलकर वृक्ष लगाएँ प्रकृति की नैसर्गिकता काे बचाना है,
वृक्षाराेपण से ही रहेंगे आबाद ये समज न पाया इंसान।