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Krishna Bansal

Abstract Tragedy Classics

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Krishna Bansal

Abstract Tragedy Classics

सम्बोधन

सम्बोधन

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भगवन् 

कैसा यमदूत भेजा है 

न उसमें जान 

न प्राण 

न कहीं दिखता है 

न काटता है 


न भिनभिनाता है 

बस गला घोंटता है 

सांस दबाता है 

चार दिन में मनुष्य को 

मौत के घाट उतार देता है।

 

कोई स्मार्ट सा यमदूत भेजना था

अपनी प्रतिष्ठा के मुताबिक 

जाना तो सबने ही है एक दिन 

पर जाने में मज़ा तो आता।


पापी कंस को तुमने स्वयं घसीट कर मारा

दुष्ट रावण को तुमने तीरों से मारा 

बड़े-बड़े ऋषि मुनियों को 

दीप-प्रकाश द्वारा बुलाया 

आम आदमी के लिए 

साधारण सा वायरस 

ऐसा पक्षपात क्यों भई।


माना

वायरस शक्तिशाली है 

वायरस ताकतवर है 

जिसके गले पड़ गया 

पचास प्रतिशत मामलों में लेकर जाएगा 

जानते हो कोविड से आदमी


कितनी भयानक मौत मरता है 

घर वाले भी मृत शरीर को

लेने को तैयार नहीं 

क्यों तड़पा तड़पा कर मारे जा रहे हो।

 

कोई स्मार्ट सा यमदूत भेजना था 

अपनी प्रतिष्ठा के मुताबिक 

जाना तो सबने ही है एक दिन

जाने में मज़ा तो आता।


 कैसी महामारी है यह 

आदमी से आदमी डरने लगा है

सामूहीकरण तो जैसे 

खत्म ही हो गया है 

अब तो अकेलापन 

खाने को दौड़ता है। 


मरते तो लोग दुर्घटनाओं से भी हैं

मरते तो लोग बिमारियों से भी हैं

प्राकृतिक मौतें भी कितनी होती है

पर करोना से मौत आए  

हाए तौबा।


जानती हूं मानव जाति ने 

बहुत गलतियां की है 

पर तुम तो बड़े हो 

क्षमा बड़ेन को चाहिए 

छोटन को उत्पात 

बहुत हो गया 

वापस बुलाओ इस खूंखार को। 


अब तो कोई स्मार्ट सा यमदूत भेजो 

अपनी प्रतिष्ठा के मुताबिक 

जाना तो सब ने ही है एक दिन

जाने में मज़ा तो आएगा।


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