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sakshi shiv

Tragedy Inspirational

2.1  

sakshi shiv

Tragedy Inspirational

समाज

समाज

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रणभूमि है यह समाज है यह खुला मैदान,

जो धर्म का गुण गाएगा उसी का है यहाँ मान,

रोज़ लड़ते हैं यहां लोग अपने हक के लिए,

रोज़ होती है तौहीन अपने -अपने मज़हब के लिए।


तेरा- मेरा करते लोग ना जाने कहां खो रहे हैं,

धर्म के नाम पर लोग एक दूसरे से दूर हो रहे हैं,

रोज़ हो रहे दंगे यहां धर्म के लिए,

रोज़ बिक रहा इमान सिर्फ घमंड के लिए।


अपने- अपने समाज का नारा लिए लोग यहां जी रहे हैं,

ना जाने इंसानियत ये कहां खो रहे हैं,

समाज का डर ये आने व

ाली पीढ़ी को दिखाते हैं,

पीढ़ी से भी यह हमारी एकता भंग कराते आते हैं।।


भूल रहे हैं लोग उन्हें जिन्होंने आज़ाद कराया यह जहां,

अगर समाज वो भी बांट देते तो क्या कर पाते वह अपने को बयां,

उन्होंने तो कहा अपनी भूमि के लिए एकत्रित चलो,

पर ना जाने लोग क्यों बांट रहे यह जहां ।।


असल विकास तो एकता में बसा है,

धर्म- समाज तो इंसान को बांटने वाली एक सजा है,

धर्म नहीं कहता अपने -अपने समाज बनाओ,

अरे! वह तो सिर्फ यही कहता है इंसान हो इंसानियत दिखाओ


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