STORYMIRROR

Megha Rathi

Abstract

4  

Megha Rathi

Abstract

सजावट

सजावट

1 min
415

मैंने आज कई रंगों का,

एक ख्वाब बुना था।

किसी ने सलीके से सजाकर

कुछ रंग हटा दिए। 


क्या तुमने देखा है उन रंगों को ?

जो अभी- अभी इंद्रधनुष का

हाथ पकड़ कर,

नीली नदी में गोते लगा रहे थे ?


गीली हरी घास की खुशबू ने भी,

सहमते हुए

चुपके से उन रंगों को-

कहीं छिपा लिया है।

क्या तुमने देखा था ?


नर्म दूब पर रुई के-

सफेद गोले में लिपट कर-

कुलांचे भरते उन रंगों की-

मासूमियत को ?


मेरा ख्वाब मुझ जैसा ही था।

अनगढ़- खामोश- सरल-

 मगर चंचल हवा सा।

उसे करीने से सजा तो दिया,

लेकिन अब उसकी आंखें

भी मुझ जैसी ही हो गई हैं,


बनावटी चमक से भरी

खिलखिलाती हुई।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract