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Manisha Wandhare

Abstract

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Manisha Wandhare

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सिसक दिल की...

सिसक दिल की...

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कुछ हद तक समझ आई,

तेरी नराजगियों की कहानी,

क्या करे हम जो अडे हैं

बदलती नही है आदते ,

जो बरसो की है ...

तुमने तो कहा था,

कुछ तुम बदलो ,

कुछ बदलेंगे हम लेकिन,

अडी है अहम की लकीरे ,

जो मिटती नही है ...

मिलावट शायद खून में ही है,

दोष हम नही देते किसी को ,

अब क्या कहे,

नसीब में था जो लिखा,

मर्जी तो भगवान की ही है ...

छोड

के जाओगे तो क्या सहलोगे ,

टूटे दिल की तड़पन को ,

साथ में बंधा है वो फरिश्ता ,

जिसके लिये जिंदगी से भी ,

रुसवा होना नही है...

शोर तो कुछ देर होगा,

फिर से खामोशियाँ ही जीतेगी ,

संभल सको इस दौर से तो ,

सोच लेना अब ,

इनसे परहेज करना नही है...

समझ तो होगी ना तुममें ,

जो मैंने कहाँ उसे पढ सको,

कविता औरो के लिये होगी,

हमने तो सिसक ,

दिल की लिखी है ...


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