सिर्फ तुम्हारा
सिर्फ तुम्हारा
आज खोला अलमारी में
वो बंद पड़ा बक्सा
रखा था जिसमें कभी
पत्र, जो भेजे नहीं गए
अहा! कितनी यादें
कलमबंद की हुई
पड़ी हुई थी
भीनी खुशबू के साथ
हाथ में लेते ही
लग गया रंग
चित्रों का जिन्हें
कभी बनाया था मैंने
उसके लिए
कोने में लिखा था नाम
वो नाम जो शायद ही
करता होगा मुझे याद
पर उससे क्या
एक बार सोचा था
आग लगाने को
फाड़ कर कचरे में
डालने का
पर बेबस मैं
कर नहीं पाया कभी
ऐसा
अभी भी लिखा था
अंत में " सिर्फ तुम्हारा'
उन पत्रों पर
जो नहीं भेजे गए
कभी।।

