सिर्फ 26 और 15
सिर्फ 26 और 15


बहुत लोग करते हैं गुलिस्ताऐं
वतन की बाते यारो।
पर यह बाते 15 अगस्त
और 26 जनवरी पर ही
क्यों याद आती है
उसके बाद मैं कौन तू कौन
भारत में यह चलता है
बाकी के 363 दिन धर्म और
जाति का मसला उछलता है
जो पापा की परियाँ अपने भाषण में
देश को जोड़ने की बातें करती है
वही पापा की परियाँ अगले दिन
किसी गुमशुदा पैड़ के नीचे
अपने आशिक के साथ पापा का घर
छोड़ने की बातें करती हैं
बाप का लाडला गाता है
मेरा मुल्क मेरा देश मेरा यह वतन
वही सिगरेट का धुआ उड़ाकर
बर्बाद करता है अपना तन और धन
कॉलिज स्कूल का रस्ता भूल
गलियों के गुन्डे बनते है
माँ बाप का सिर झुकजाता जब
बिन व्याहे बच्चे जनते हैं
अब क्यों नहीं करते बच्चे
जनगणमन और बन्देमातरम
जैसे गीतों का प्रायास
पहले तो महीनों से करते थे
सारे जहाँ से अच्छा जैंसे
गीतो का रियाज
कवि हमे जब सुनाते थे
वीरो की गाथाऐं
उनके हर शब्द हमको
ह़कीकते दरमयान लगते थे
लड्डू समोसे का ऑर्डर
हफ्तो पहले होता था
और तिरंगा बनाने को हम
सारी रात जगते थे
आजादी के किस्से सुनकर
रुह काँपने लगती थी
देशभक्ती के गीतों पर
महफिले नाचने लगती थी
अब नहीं भगत आजद और
अशफाक गुरु जैंसे बन्दे
जिन्हें फूल बताशो जैंसे
लगते थे अंग्रेजो के डन्डे
छोड़ ऐश देश की खतिर
गर्दन में डाल लियें फन्दे
और जब यह दहाड़ लगाते
झुक जाते अंग्रेजो के झन्डे
अब चलन दिखावे का आया
हर कोई दिखावा करता है
दो फूल चढ़ाके शहीदों पर
हर पल गद्दारी करता है
रिश्वत लेना ठगना सबको
यह पाप नहीं क्या है बोलो
धूल झोँकना झूठ बोलना
सच के संग इसको ना तोलो
अब वतन फ़रोशी मिलते है
जो लहु की होली खेलते हैं
जब जब खुशहाल हुआ भारत वो
गड्डो कि तरफ क्यों धकेलते हैं।
दो दिन ही तिरंगे के नीचे
सर अपना उँचा रहता है
और बाकी दिन मोबाइल पर
सर झुका झुका सा रहता है
इन दो दिन ही क्यों याद आती हैं
हमें अपने देश की बाते
और बाकी के दिन क्या हम
किसी और देश के हो जाते
अब क्यों नहीं करते बच्चे।