सीमायें तुझे बुलायें
सीमायें तुझे बुलायें


सीमाएं बुलाएं तुझे,... चल राही ।
सीमाएं पुकारे आजा... तू सिपाही।।
थे हम अहिंसा के पुजारी,
पर सबने समझा इसे कायरता हमारी।
करते जब भी हम प्यार की बातें
वह समझते हैं इन्हें बेकार की बातें।
हमारा यही प्यार यही नैतिकता
पड़ी हम पर ही सदा भारी।।
सीमाएं बुलाएं तुझे.......।
यह नहीं सतयुग ,यह कलयुग की माया,
यहां कौन प्यार से हुआ?, है अपना भाया।
त्रेता में भी द्वापर में भी कोई न माना प्यार से,
रावण औ,कंस का भी कर डाला
वध श्री कृष्ण ने श्रीराम ने।
सीमाएं बुलाएं तुझे,.....।
बहुत निभाई बड़े भाई की जिम्मेदारी,
फिर भी हमने सदा ही खाई
सीने पै गोली नमकहराम की।
तो अब मत रोको,अब मत सोचो
ठोक सको तो, सीधा ठोको ,सीना ठोको
बस यही है कामना अब हिन्दुस्तान की।
सीमाएं बुलाएं तुझे.....चल राही।
सीमाएं पुकारे आजा... तू सिपाही।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
9/12/19