STORYMIRROR

anuradha chauhan

Abstract

3  

anuradha chauhan

Abstract

शून्य

शून्य

1 min
494

शून्य से आए हैं

शून्य में समा जाएंगे

शून्य के रहस्य को

हम फिर भी न समझ

पाएंगे


शून्य में ब्रह्म छुपा

शून्य है परमात्मा

अनेकों रहस्य लिए

शून्य ही है आत्मा


शून्य ही आरंभ है

शून्य में अंत छिपा

शून्य का अनंत विस्तार

कोई भी न समझ सका


शून्य देकर ही जगत को

भारत जग में महान बना

शून्य ही निराकार शिव

शून्य में ब्रह्मांड बसा



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract