शत्रु पड़ोसी
शत्रु पड़ोसी
वो भी एक स्वर्णिम समय था,
जब सभी देश अखंड भारत के मित्र थे.
अखंड भारत में आज के शत्रु पड़ोसी,
सम्राट अशोक के भारत के अभिन्न अंग थे.
आज वो समय आ गया है,
हमारे अंग, शत्रु पड़ोसी के मित्र बने है.
बुद्ध के पावन भूमि को आँख दिखाते है,
बेवजह अकसर युद्ध की बात करते है.
क्या ये हमारे सांस्कृतिक धरोहर का पतन है?
या आज के बौने राजनेताओं की राजनीतिक करणी है,
क्या ये बौनी कुटनिती का अंतिम परिणाम है,
हर कोई हमें अकारण आँख दिखाता रहता है.
दुनिया का कटु सत्य सब जानते है,
हम अपना भूगोल नहीं बदल सकते है.
क्या आज राजनीति इतनी बौनी हो गई है ?,
पक्ष –विपक्ष में राष्ट्र हित के प्रति कोई समन्वय नहीं है.
पक्ष –विपक्ष की विश्वसनीयता की खाई,
क्या सागर के गहराई से भी गहरी हो गई ?
राजनेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की उँचाई,
देश की एकता ,अखंडता, समप्रभुता से बड़ी हो गई,
क्या भारतीय राजनीति में वो दूर दृष्टि नहीं रह गई ?,
जो हिमालय के चोटी से गिरकर रसातल में खो गई
देशभक्ति, देशनिष्ठा ,राष्ट्रहित और देश प्रेम की गहराई,
देश के नेताओं की कागजी औपचारिकता मात्र बन गई,
हर कोई आये दिन हमें ललकारता है,
छोटा हो या बड़ा अपनी औकात दिखाता है.
शायद हम अपने पुरखों की विरासत भूल चुके है,
इसलिए शत्रु पड़ोसी भी हमें आंख दिखाते हैं.
ये समय का कैसा दौर भारत में चल रहा है,
देशवासियों का स्वाभिमान हर पल डगमगा रहा है.
क्या देश की एकजुटता और अखंडता फिर खोनी है ?,
सम्राट अशोक के आन, बान ,शान को मिटाना है.
अगर देश की गौरव-शाली इतिहास बनायें रखना है,
तो बुध्द, अशोक, अन्य महापुरुषों दिखायें मार्ग पर चलना है.
नस्लवाद की बढ़ती शक्ति को भारतीयों को अब रोकना है,
नस्लवादी संघटन के नेता को उसकी औकात दिखाना है.
ऐसे संघटन के नेता को समय से पहिले खत्म करना है,
आम जनता के समस्या को समय पर हल करना है.
संविधान में आम जनता का विश्वास दृढ़ करना है,
संविधान के मूल भावना से छेड़ -छाड़ को रोकना है.