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शतरंज के खेल में शह मात

शतरंज के खेल में शह मात

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तुम्हारा प्रश्न 

आज की आधुनिक 

क्रांतिकारी स्त्री से 

शिकार होने को तैयार हो ना 

क्योंकि 

नये नये तरीके

ईजाद करने की 

कवायद शुरु कर

दी है मैने

तुम्हें अपने चंगुल में

दबोचे रखने की 

क्या शिकार होने को

तैयार हो तुम..स्त्री?


तो इस बार तुम्हें

जवाब ज़रूर मिलेगा …


हां, तैयार हूँ मैं भी 

हर प्रतिकार का

जवाब देने को

तुम्हारी आंखों में उभरे 

कलुषित विचारों के

जवाब देने को 

क्योंकि सोच लिया है मैने भी

दूंगी अब तुम्हें 

तुम्हारी ही भाषा में जवाब


खोलूँगी वो सारे बंध 

जिसमे बाँधी थी गांठें 

चोली को कसने के लिये 

क्योंकि जानती हूँ 

तुम्हारा ठहराव

कहां होगा

तुम्हारा ज़ायका

कैसे बदलेगा

भित्तिचित्रों की

गरिमा को सहेजना

सिर्फ़ मुझे ही

सुशोभित करता है 


मगर तुम्हारे लिये हर वो 

अशोभनीय होता है जो गर

तुमने ना कहा हो

इसलिये सोच लिया है 

इस बार दूँगी तुम्हें जवाब

तुम्हारी ही भाषा में

मर्यादा की हर

सीमा लांघकर

देखूंगी मैं भी उसी

बेशर्मी से 

और कर दूंगी उजागर 

तुम्हारे आँखो के

परदों पर उभरी 

उभारों की दास्ताँ को

 

क्योंकि येन केन प्रकारेण 

तुम्हारा आखिरी मनोरथ

तो यही है ना

चाहे कितना ही खुद को सिद्ध

करने की कोशिश करो

मगर तुम पुरुष हो ना 

नहीं बच सकते अपनी प्रवृत्ति से 

उस दृष्टिदोष से जो सिर्फ़

अंगों को भेदना ही जानती है


इसलिये इस बार दूँगी मैं भी

तुम्हें खुलकर जवाब 

मगर सोच लेना

कहीं कहर तुम पर

ही ना टूट पड़े

क्योंकि बाँधों मे बँधे

दरिया जब बाँध तोडते हैं

तो सैलाब में ना गाँव

बचते हैं ना शहर

क्या तैयार हो तुम

नेस्तनाबूद होने के लिये

कह

ीं तुम्हारा पौरुषिक

अहम आहत तो नहीं

हो जायेगा 

सोच लेना इस बार

फिर प्रश्न करना 

क्योंकि सीख लिया

है मैने भी अब 

नश्तरों पर नश्तर लगाना

…तुमसे ही ओ पुरुष !!!!


दांवपेंच की

जद्दोजहद में उलझे तुम 

सम्भल जाना इस बार 

क्योंकि जरूरी नहीं होता 

हर बार शिकार

शिकारी ही करे

इस बार शिकारी के

शिकार होने की

प्रबल सम्भावना है 

क्योंकि जानती हूं

आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में

आहत होता तुम्हारा अहम 

कितना दुरूह कर

रहा है तुम्हारा जीवन 

रचोगे तुम नये षडयत्रों

के प्रतिमान

खोजोगे नये ब्रह्मांड

 

स्थापित करने को

अपना वर्चस्व 

खंडित करने को

प्रतिमा का सौंदर्य 

मगर इस बार मैं

नहीं छुड़ाऊँगी खुद को

तुम्हारे चंगुल से 

क्योंकि जरूरी नहीं

जाल तुम ही डालो और

कबूतरी फ़ंस ही जाये

क्योंकि 

इस बार निशाने पर तुम हो 

तुम्हारे सारे जंग लगे

हथियार हैं

इसलिये रख छोड़ा है

मैने अपना ब्रह्मास्त्र 

और इंतज़ार है तुम्हारी

धधकती ज्वाला का

मगर सम्भलकर 

क्योंकि धधकती ज्वालायें

आकाश को भस्मीभूत

नहीं कर पातीं 


और इस बार 

तुम्हारा सारा आकाश हूँ मैं..

हाँ मैं, एक औरत 

गर हो सके तो करना कोशिश

इस बार मेरा दाह

संस्कार करने की 

क्योंकि मेरी बोयी

फ़सलों को काटते 

सदियाँ गुज़र जायेंगी 

मगर तुम्हें ना धरती

नज़र आयेगी 

ये एक क्रांतिकारी आधुनिक

औरत का तुमसे वादा है 

शतरंज के खेल में शह मात

देना अब मैने भी सीख लिया है 

और खेल का मज़ा तभी आता है

जब दोनो तरफ़ खिलाड़ी

बराबर के हों 

दांव पेंच की तिकड़में

बराबर से हों 

वैसे इस बार वज़ीर और

राज़ा सब मैं ही हूँ

कहो अब तैयार हो

आखिरी बाज़ी को…ओ पुरुष !!


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