Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत -६७; स्वयम्भुव मनु का ध्रुव जी को युद्ध बंद करने के लिए समझाना

श्रीमद्भागवत -६७; स्वयम्भुव मनु का ध्रुव जी को युद्ध बंद करने के लिए समझाना

2 mins
245



मैत्रेय जी कहें कि उन मुनियों के

ध्रुव जी ने वचन ये सुनकर

उन्होंने आचमन कर प्रभु का

नारायणास्त्र चढ़ाया धनुष पर।


यक्षों द्वारा रची माया सब

उस अस्त्र से क्षण में नष्ट हुई

शत्रु सेना बैचेन हुई जब 

अस्त्र से वाणों की वर्षा हुई।


यक्ष भी ध्रुव पर टूट पड़े थे

ध्रुव ने वाणों से प्रहार किया

उनके अंगों को काटकर

सत्य लोक में उन्हें भेज दिया।


ध्रुव के पितामह स्वयम्भुव मनु ने

देखा कि विचित्र रथ पर सवार हो

ध्रुव वहां पर हैं मार रहे

अनेकों निरपराध यक्षों को।


दया आई उन यक्षों पर उन्हें

साथ लेकर कई ऋषिओं को

आये वो ध्रुव के पास

समझाने लगे अपने पौत्र को।


मनु कहें, बेटा ध्रुव बस

अधिक क्रोध करना नहीं अच्छा

यह पापी नर्क का द्वार है

इसी से वध हुआ इन यक्षों का।


हमारे कुल के योग्य कर्म नहीं

निंदा करते साधु इसकी बड़ी

माना भाई से बहुत अनुराग था

पर जो किया है वो भी ठीक नहीं।


भाई के वध से संतप्त हो तुमने

अपराध के लिए एक यक्ष के

कितने यक्षों की हत्या कर दी

साधुजनों का मार्ग नहीं ये।


कठिन काम प्रभु की आराधना

पर तुमने बालकपन में ही

परमपद प्राप्त था कर लिया 

कठिन बड़ी तपस्या तुमने की।


प्रिय भक्त समझें प्रभु तुम्हें

भक्त भी तेरा आदर करते

साधुजनों के पथप्रदर्शक तुम

निंदनीय कर्म फिर कैसे करते।


अपनों से बड़े पुरुषों के प्रति 

रखनी चिहिए है शहनशीलता 

छोटे के प्रति दया भाव और 

बराबर वालों के साथ मित्रता।


समस्त जीवों के साथ पुरुष जो 

ममता का वर्ताव है करता 

प्रभु उससे प्रसन्न हैं होते 

ब्रह्मपद वो प्राप्त करता।


भगवान ही जगत की सृष्टि करें 

संहार करें फिर वो उसका 

सम्पूर्ण सृष्टि में प्रविष्ट वो 

न कोई मित्र, न शत्रु उनका।


कर्मों के आधीन होकर हम 

काल की गति का अनुसरण हैं करते 

कर्मानुसार ही सब जीवों को 

दुःख सुख हैं यहाँ पर मिलते।


कुबेर के अनुचर ये यक्ष हैं 

तेरे भाई के कातिल नहीं हैं 

जन्म मरण है जिनके हाथ में 

वो तो बस एक ईश्वर हैं।


अभक्तों के लिए मृत्यु रूप वो 

अमृत रूप हैं भक्तों के लिए 

संसार का एक मात्र आश्रय है 

उनकी शरण में जाना चाहिए तुम्हें।


जिन भगवान ने परमपद दिया तुम्हे 

उन अविनाशी परमात्मा को 

अध्यात्म की दृष्टि से 

अंतकरण में अपने ढूंढो।


भगवान में सुदृढ़ भक्ति हो इससे 

मेरेपन की अविद्या कट जाये 

अपने क्रोध को शांत करो तुम 

कल्याण मार्ग में ये रोड़ा अटकाए।


क्रोध से वशीभूत पुरुष से 

सभी लोगों को भय होता है 

क्रोध के वश में न होना चाहिए 

उसे जो बुद्धिमान होता है।


यक्षों ने भाई का वध किया है 

ये समझ यक्षों को मारा 

शंकर के सखा कुबेर जी का 

इससे अपराध हुआ तुम्हारे द्वारा।


इसलिए विनय के द्वारा 

 प्रसन्न करो शीघ्र तुम उन्हें 

ये शिक्षा देकर ध्रुव को मनु 

ऋषिओं सहित चले लोक को अपने।

 









Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics