श्रीमद्भागवत -२४ ;भगवान के लीलावतारों की कथा
श्रीमद्भागवत -२४ ;भगवान के लीलावतारों की कथा
प्रलय के जल में डूबी हुई थी
उद्धार करने को उस पृथ्वी का
निकालने के लिए बाहर भगवान ने
शरीर ग्रहण किया वराह का।
हिरण्यक्ष जल के अंदर लड़ने को
जब उस भगवन के आया सामने
टुकड़े टुकड़े कर दिए उसके
अपनी दाढ़ी से वराह भगवान ने।
रूचि प्रजापति पत्नी आकृति से
सुयज्ञ रूप में अवतार ग्रहण किया
दक्षिणा नाम की पत्नी उनकी
सुयम देवताओं को उत्पन्न किया।
तीनों लोकों के संकट हर लिए
सभी को उन्होंने था कृतार्थ किया
इसी लिए सायम्भुव मनु ने
उनको हरी का नाम दे दिया।
प्रजापति कर्दम की पत्नी
देवहूति से जन्म लिया था
कपिल जी के अवतार में उन्होंने
माता को उपदेश दिया था।
ऋषि अत्रि भगवान को अपने
पुत्र रूप में पाना चाहें
प्रसन्न हुए भगवन और कहें
दे दिया अपने आप को तुम्हे।
अपने वरदान को पूरा करने
पुत्र रूप में अवतार लिया था
ऐसे अवतार लेने से उनका
दत्तात्रेय नाम पड़ा था।
उनके चरणकमलों के पराग से
अपने शरीर को पवित्र कर लिया
यदु और सहस्रार्जुन अदि ने
योग मोक्ष की प्राप्त कीं सिद्धियां।
हे नारद, सृष्टि प्रारम्भ करने की
इच्छा से मैंने किया तप था
मेरे तप से प्रसन्न हुए वो
अवतार लिया चारों भाईओं का।
सनक,सनन्दन, सनातन और
सनत्कुमार रूप में जन्म लिया था
ऋषिओं को, जो भूल गए थे
आत्म ज्ञान का उपदेश दिया था।
धर्म की पत्नी मूर्ती थी जो
और दक्ष की कन्या भी थी
नर, नारायण उनसे प्रकट हुए
भारी तपस्या उन्होंने की थी।
इंद्र ने भेजी थीं अप्सरा
सामने उनके आते ही वो
स्वभाव अपना सब भूल गयी थीं
तपस्या में विघ्न ना डाल सकीं वो।
पिता उत्तानपाद के पास बैठे हुए
पांच वर्ष के बालक ध्रुव को
सौतेली माँ सुरुचि, ने बचनों के
बाणों से भेद दिया उनको।
छोटी अवस्था में ही ग्लानि में
तपस्या करने वन में चले गए
तपस्या से भगवान प्रसन्न हुए
ध्रुवपद का वरदान दिया उन्हें।
कुमार्गगामी वेन का ऐश्वर्य और
पौरुष सब भस्म हो गया
ब्राह्मणों ने जब शाप दिया उसे
नरक में तब वो गिरने लगा।
ऋषिओं की प्रार्थना पर भगवान ने
शरीर का उसके मंथन किया था
नरकों से उबारने को उसको
पृथु रूप में अवतार लिया था।
पुत्र शब्द को चरितार्थ किया और
पृथ्वी को गाय का रूप दिया
जगत के लिए पृथ्वी से फिर
दोहन की समस्त औषधियां।
नाभि की पत्नी सुदेवी के गर्भ से
ऋषभदेव ने जन्म लिया था
इस जन्म में योगचर्य का आचरण कर
परमहंस पद प्राप्त किया था।
उन्ही यज्ञपुरुष का मेरे यज्ञ से
अवतार हुआ हयग्रीव रूप में
प्रकट हुई वेदवाणी उनकी
नासिका से शवास रूप में।
चाक्षुक मन्वन्तर के अंत में
मत्स्य रूप में प्रकट हुए वो
धारण किया पृथ्वी रुपी नाव को
जीवों के आश्रय बने वो।
प्रलय के उस भयंकर जल में
मेरे मुख से गिरे हुए वेदों को
लेकर अपने पास भगवान फिर
उसी जल में विहार करें वो।
मुख्य देवता और दानव सब
सोचें अमृत हम कैसे पाएं
समुन्द्र को जब वो मथ रहे थे
कच्छप रूप में प्रभु थे आये।
पीठ पर मंदराचल धारण किया
घूमने से और उसकी रगड़ से
पीठ की खुजलाहट मिट गयी
सुख की नींद थे वो सो गए।
देवताओं का भय मिटाने
नरसिंह रूप में वो थे आये
हिरण्यकशपु को जांघों पर डाल कर
उसका पेट वो फाड़ते जाएं।
सरोवर में महाबली ग्रह ने
गजेन्द्र का था पैर पकड़ लिया
घबराकर तब गज ने सूंड में
कमल लेकर प्रभु को स्मरण किया।
पुकार सुनी भगवान ने उसकी
गरुड़ पर चढ़ वहां थे आये
ग्रह का काटा मस्तक, चक्र से
बिपति से गज को बाहर ले आये।
अदिति के पुत्रों में सब से छोटे
भगवान वामन अवतार लिया था
बलि से तीन पग पृथ्वी मांगी
दो पग में लोकों को नाप लिया था।
तीसरे पग के लिए बाली ने
सर अपना आगे था रख दिया
वचन अपना रखने के लिए
प्रभु का चरणामृत धारण किया।
नारद, तुम्हारे प्रेम भाव से
प्रसन्न हो हंस रूप में आये
योग, ज्ञान और आत्मतत्व का
धर्म उपदेश तुम्हे दे जाएं।
वही भगवान सभी मन्वन्तरों में
मनु के रूप में अवतार हैं लेते
मनुष्यों की वो रक्षा करते
सब लोगों को सुख वो देते।
भगवान धन्वंतरि नाम से ही अपने
नष्ट करें बड़े बड़े रोगों को
समुन्द्र मंथन का अमृत पिलाकर
अमर किया था देवताओं को।
क्षत्रिय जब ब्राह्मण द्रोही हुए
परशुराम रूप धरें वो
फरसा लेकर क्षत्रिओं का
इक्कीस बार संहार करें वो।
इक्ष्वाकु कुल में अवतीर्ण होकर
श्री राम का रूप धरें वो
पृथ्वी से दैत्यों को ख़त्म करें
और रावण का वध करें वो।
धरती पर अधर्म बढे जब
पृथ्वी का वो भार उतारें
कृष्ण रूप में अवतार ग्रहण करें
मारे दैत्यों को, लीलाएं करें।
अधर्मी लोग जब इस धरती का
अपने कर्मों से, सत्यानाश करें
बुद्ध रूप में आएंगे प्रभु
लोगों को तब वो उपदेश करें।
कलयुग के अंत में जब
सब पाखंडी हो जायेंगे
कथा ना कर सकें सत्पुरुष भी
कलिक अवतार प्रभु ग्रहण करेंगे।
सृष्टि और संहार करती जो
वो माया उनकी दास है
और इस माया जैसी हीं
अनंत शक्तियां उनके पास हैं।
भगवान का वास्तविक रूप जो
सत, असत दोनों से परे है
माया समीप ना जा सके उनके
कर्मों का फल सभी वो देते हैं।
जो भगवन ने उपदेश दिया मुझे
वही है सारा भागवत में
विभूतिओं का संक्षिप्त वर्णन है
विस्तार करो इसका जन जन में।