श्रीमद्भागवत-२३०;; श्रीमद भागवत की संक्षिप्त विषय सूची
श्रीमद्भागवत-२३०;; श्रीमद भागवत की संक्षिप्त विषय सूची


श्रीमद्भागवत-२३०;; श्रीमद भागवत की संक्षिप्त विषय सूची
नमस्कार भगवद्भक्तिरूप महान धर्म को
नमस्कार विश्वविधाता कृष्ण को
सूत जी कहें सुनाता अब मैं
विवरण स्नातन धर्म का आपको ।
शौनक़ादि ऋषियों, भागवत पुराण जो
अद्भुत चरित्र विष्णु का इसमें
जिन हरि का संकीर्तन हुआ इसमें
विराजमान वे सबके हृदय में ।
प्रेमी भक्तों के जीवनधन हैं
सबकी इंद्रियों के स्वामी वे
गोपनीय ब्रह्म तत्व का वर्णन हुआ
इस श्रीमद्भागवत पुराण में ।
जगत् की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय की
प्रतीति होती उस ब्रह्म में ही है
उसी परमतत्व की प्राप्ति के
साधनों का निर्देश इस पुराण में है ।
भक्तियोग का निरूपण हुआ है
इस महापुराण के प्रथम सकंध में
भक्तियोग से उत्पन्न वैराग्य का
भी वर्णन किया गया उसी में ।
ब्राह्मण के शाप से परीक्षित जी जब
व्रत लेकर गंगा तट पर गए
शुकदेव जी से संवाद उनका जो
प्रारंभ हुआ वह इसी स्कंध में ।
सृष्टि की उत्पत्ति दूसरे स्कंध में
योगसाधना से शरीऋ त्याग का
और संवाद ब्रह्मा, नारद का
संक्षिप्त वर्णन सभी अवतारों का ।
तीसरे स्कन्ध में पहले विदुर, उद्धव
फिर समागम विदुर और मैत्रेय का
फिर पुराणसंहिता के विषय में प्रश्न और
निरूपण इसमें प्रलय काल का ।
प्राकृतिक सृष्टि, कार्य सृष्टि का वर्णन
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का वर्णन है इसमें
विराट पुरुष की स्थिति का स्वरूप और
स्थूल, सूक्ष्म काल का स्वरूप इसमें ।
लोकपद्य की उत्पत्ति,, वराह स्वरूप
और इससे वध हिरण्याक्ष का
सृष्टि देवता, पशु, मनुष्यों की
प्रसंग रुद्रों की उत्पत्ति का ।
अर्धनारीश्वर के स्वरूप का विवेचन
जिससे जन्में स्वयंभू मनु, शतरूपा
कर्दम प्रजापति का चरित्र और
उनसे मुनिपत्नियों के जन्म का ।
महात्मा भगवान् कपिल जी का प्रसंग
और उनकी माता देवहूति जी
संवाद माता और पुत्र का
बातें उन दोनों की ज्ञान भरीं ।
मरीचि आदि नौ प्रजापति की
उत्पत्ति का वर्णन चौथे स्कन्ध में
दक्ष यज्ञ का विध्वंस और
ध्रुव और पृथु का चरित्र उसमें ।
प्रियव्रत, नाभि,ऋषभ और भरत चरित्र
वर्णन वर्ष, समुंद्र, पर्वत नदियों का
पाताल, नरकों की स्थिति ज्योतिश्चक्र द्वारा
पाँचवें स्कंध में ये सब किया गया ।
प्रचेताओं से दक्ष की उत्पत्ति
ये विषय छठे सकंध के
दक्ष पुत्रियों की संतान का
पूरा वर्णन भी इसी में ।
देवता, असुर,मनुष्य, पशु, पर्वत
जन्म वर्णन पशु, पक्षियों का
वृत्रासुर की उत्पत्ति और
परमगति प्राप्त करना उनका ।
दैत्यराज हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष के
जन्मकर्म सातवें स्कन्ध में
दैत्यशिरोमणि भगवान प्रह्लाद के
उत्कृष्ट चरित्र का निरूपण इसमें ।
मन्वन्तरों की कथा आठवें स्कंध में
गजेंद्र मोक्ष की कथा भी इसमें
विभिन्न मन्वन्तरों में होने वाले
अवतारों का वर्णन, विष्णु भगवान के ।
कूर्म, मत्स्य, वामन, धन्वन्तरि
हयग्रीव आदि अवतार हैं इसमें
देवता दैत्यों द्वारा समंदर मंथन
देवासुर संग्राम का वर्णन भी इसमें ।
मुख्यता नौवें स्कंध में
वर्णन है राजवंशों का
जन्म, कर्म इक्ष्वाकु का
और वंश विस्तार भी उनका ।
वर्णन महात्मा सुद्युम्न , इला का
और तारा के उपाख्यान का
सूर्यवंश का वृतांत aur
वर्णन शशाद , नृग आदि का ।
चरित्र शर्यता, खट्वांग, मांधाता
सोभरी, सगर, कूकुत्स्थ और राम का
तदनन्तर वेदव्यास, निमि का और
वर्णन जनकों की उत्पत्ति का ।
भृगु शिरोमणि परशुराम जी
और क्षत्रिय संहार उनके द्वारा
चन्द्रवंशी पुरुरवा का वर्णन
ययाति, नहुष, दुष्यंतनंदन भरत का ।
शान्तनु और उनके पुत्र
भीष्मादि का भी वर्णन इसमें
और वंश विस्तार यदु का
बड़े बेटे जो थे ययाति के ।
इसी यदुवंश में भगवान कृष्ण ने
अवतार ग्रहण किया और उन्होंने
असुरों का संहार किया
बहुत सी और भी लीलाएँ ।
लीलाओं का उनकी कोई पार ना पा सके
और दसवें स्कंध में उनकी
लीलाओं का कीर्तन किया गया
वासुदेव पिता उनके और माँ देवकी ।
गोकुल में नंदबाबा के घर में
छोड़ आए थे वासुदेव जी
बचपन में पूतना, शकटासुर, तृणावर्त मारे
और बकासुर को मारा ब्रजमंडल में ही ।
वत्सासुर का भी वध किया
दावानल से बचाया गोपों को
कालयवन का दमन किया
अजगर से छुड़ाया नन्दबाबा को ।
गोपियों के साथ लीलाएँ कीं
कृपा की यज्ञपत्नियों पर भी
गोवर्धन धारण किया जब
यज्ञअभिषेक किया इन्द्र ने भी ।
कामधेनु ने गोविंदा कहा उन्हें
रास की व्रजगोपियों के साथ में
शंखचूड़ का वध किया था
वध की लीला की अरिष्ट, केशी के ।
अक्रूर जी वृंदावन में आए
कृष्ण बलराम को ले गए मथुरा में
व्रजसुंदरियों ने जो विलाप किया था
उसका वर्णन है इस स्कंध में ।
कुवलियापीड, चानूर, मुष्टिक और
कंस आदि का संहार किया था
सांदीपनी गुरु के यहाँ विद्या ली
उनके मृत पुत्र को लोटाया ।
जरासंध बड़ी बड़ी सेना लेकर
आया कई बार और तब भगवान ने
संहार किया उसकी सेना का
पृथ्वी का भार उतारने के लिए ।
मुचुकंद ने भस्म किया कालयवान को
रातो रात द्वारका बनाई
कल्पवृक्ष ले आए स्वर्ग से
और वहाँ से सुधर्मा सभा भी ।
रुक्मणी जी का हरन किया भगवान ने
और बाणासुर से युद्ध में
वाण छोड़ा ऐसा कि शंकर जी
जँभाई लेने लगे युद्ध में ।
इधर श्री कृष्ण ने तभी
बाणासुर की भुजाएँ काट दीं
भोमासुर को भी मारा कृष्ण ने
सोलह हज़ार कन्याएँ ग्रहण कीं ।
शिशुपाल, पोंड्रक, शाल्व, दन्त्वक्तर
शंभरासुर, द्विविद, , मुर आदि जो
दैत्यों के बल पौरुष का वर्णन
और कैसे मारा कृष्ण ने उनको ।
भगवान के चक्र ने काशी को जला दिया
पांडवों को युद्ध में जिताया
कुरुक्षेत्र की पावन धरती पर
बड़ा भार उतारा पृथ्वी का ।
ग्यारहवें स्कन्ध में वर्णन हुआ है
कि ब्राह्मणों के शाप के बहाने
किस प्रकार अपने ही यदुवंश का
संहार किया भगवान कृष्ण ने ।
उद्धव और भगवान कृष्ण का
अद्भुत संवाद इस स्कन्ध में
आत्मज्ञान और धर्म निर्णय का
निरूपण भी हुआ है इसमें ।
और अंत में भगवान कृष्ण ने
अपने आत्मयोग के प्रभाव से
कैसे क्रिया मृत्य लोक का
परित्याग , ये बतलाया इसमें ।
बाहरवें अध्याय में वर्णन है
विभिन्न युगों के लक्षण का
उसमें रहने वाले लोगों का
व्यवहार इसमें बतलाया गया ।
ये भी कि कलयुग में मनुष्यों की
विपरीत होती है गति
चार प्रकार के प्रलय का वर्णन
और उत्पत्ति तीन प्रकार की ।
और इसमें ही कहा गया
शरीर त्याग का व्रत राजा परीक्षित का
और फिर प्रसंग आया है
शाखा विभाजन कैसे हुआ वेदों का ।
मार्कण्डेय ऋषि की सुन्दर कथा
अंग, उपांगों का वर्णन भगवान के
इसमें ही अंत में वर्णन हुआ है
गणों का सूर्य देव के ।
सूत जी कहें, शौनक़ादि ऋषियों
भगवान का नाम और कीर्तन उनका
हृदय को पवित्र कर दे
सभी पापों को नष्ट कर देता ।
उनके लीला, गुणों के संकीर्तन से
स्वयं वे हृदय में आ विराजते
जो पुरुष कीर्तन करे उनका
सारे दुख मिटा देते उसके ।
जिस वाणी से उच्चारण ना उनका
वाणी भावपूर्ण होने पर भी वो
निरर्थक और सारहीन है
सुंदर होने पर भी असुंदर वो ।
उत्तोत्म विषयों का प्रतिपादन चाहे करे
असत्य है ऐसा होने पर भी
और भगवान के गुणों से परिपूर्ण
रहते हैं जो वचन या वाणी ।
वो ही परम पावन है
परम सत्य, मंगलमय वो ही
जिन वचनों में है गान प्रभु का
परम रमणीय, रुचिकर वही ।
उससे अनंत काल तक मन को
परमानंद की अनुभूति होती
उसके प्रभाव से सदा के लिए
मर जाता मनुष्यों का शोक भी ।
निर्मल हृदय वाले साधुजन
उसी स्थान पर विहार हैं करते
जहाँ गान, कीर्तन हो प्रभु का
और वहाँ भगवान हैं रहते ।
अगर रचना सुन्दर भी नहीं कोई
परंतु उसके प्रत्येक श्लोक में
भगवान के नाम जुड़े हुए हैं
वो वाणी सभी मनुष्यों के ।
पापों का नाश कर देती
क्योंकि सत्पुरुष लोक जो
ऐसी ही वाणी का श्रवण और
कीर्तन किया करते हैं वो तो ।
और वो निर्मल ज्ञान भी
मोक्ष का साक्षात साधन जो
उसकी उतनी शोभा नहीं होती
यदि भगवान की भक्ति से रहित हो ।
जो कर्म भगवान को समर्पित ना किया
वह चाहे कितना भी ऊँचा हो
सर्वदा अमंगल रूप है होता
दुख देने वाला होता वो ।
वर्णाश्रम के अनुकूल आचरण
तपस्या और अध्ययन आदि
के लिए जो परिश्रम किया जाए
उसका फल लक्ष्मी, यश आदि ।
परंतु भगवान के गुण, लीला का
श्रवण कीर्तन जो किया जाए
अविचल स्मृति प्राप्त करता है
चरणकमलों की भगवान के ।
श्री कृष्ण के चरणकमलों की
ये अविचल स्मृति सारे
पाप का नाश कर देती
परम् शांति प्रदान करे उसे ।
उसी के द्वारा अंतर्मन शुद्ध हो
प्राप्त भगवान की भक्ति हो
परमवैराग्य से युक्त, भगवान के
स्वरूप का ज्ञान, अनुभव प्राप्त हो ।
शौनकादि ऋषियों, भाग्यवान आप
निरंतर भजन करें नारायण का
जब शुकदेव जी ये कथा सुना रहे तब
मैंने भी श्रवण किया इस आत्मतत्व का ।
उसका स्मरण करा अनुग्रह किया आपने
आप सभी का ऋणी मैं इसके लिए
एक एक लीला भगवान वासुदेव की
सर्वदा योग्य कीर्तन करने के लिए ।
इस प्रसंग में मैंने उनकी ही
महिमा का वर्णन किया आपसे
जो हमारे सारे अशुभ
संस्कारों और सारे कष्टों को बहा दे ।
कीर्तन श्रवण करने से इनका
अन्तःकरण आप पवित्र हो जाता
पाप की प्रवृति भी नष्ट होती है
सारा पाप तो नष्ट हो ही जाता ।
सभी भयों से मुक्त हो मनुष्य
अभिलाषाएँ पूर्ण हों उसकी
इस पुराणसंहिता के अध्ययन से
परमपद की प्राप्ति होती ।
तत्वज्ञान को प्राप्त करे वो
बुद्धि प्राप्त हो अध्ययन से इसके
मिले राज्य, कुबेर का पद
छुटकारा हो सारे पापों से ।
वर्णन करें सर्वशक्तिमान भगवान का
सभी प्रसंग भागवतपुराण के
जन्म मृत्यु आदि से रहित वो
स्वयं आत्मतत्व ही हैं वे ।
सच्चिदानंदन उस परमात्मा को
नमस्कार करता मैं, जिन्होंने
इस चराचर जगत की सृष्टि की
आराध्यदेव वो देवताओं के ।
श्री शुकदेव जी निमग्न से
अपने आत्मानन्द में ही
सर्वथा निवृत हो चुकी थी
इस स्थिति में उनकी भेद दृष्टि ।
फिर भी श्यामसुन्दर की मधुमयी
मंगलमयी, मनोहारिणी लीलाओं ने
उनकी वृत्तियों को आकर्षित किया
और उन्होंने इस जगत के ।
प्राणियों पर कृपा करने वाले भागवत तत्व को
प्रकाशित करने वाले इस पुराण का
विस्तार किया और मैं उनके
चरणों में नमस्कार करूँ सदा ।