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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -१८२; भगवान् श्री राम की लीलाओं का वर्णन

श्रीमद्भागवत -१८२; भगवान् श्री राम की लीलाओं का वर्णन

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दीर्घबाहु राजा खटवांग के पुत्र 

दीर्घबाहु के पुत्र राजा रघु हुए 

रघु के पुत्र अज हुए और 

महाराज दशरथ पुत्र थे उनके। 


देवताओं के प्रार्थना करने से 

साक्षात् हरि ने अपने अंशाश से 

चार रूप धारण किये और 

वो पुत्र हुए राजा दशरथ के। 


राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन 

भगवान् राम सबसे बड़े थे 

राज पाट छोड़ दिया उन्होंने 

पिता के सत्य की रक्षा के लिए। 


विश्वामित्र के यज्ञ में उन्होंने 

कई राक्षसों को मारा था 

जनकपुर में सीता स्वयंव्र में 

धनुष उठाया भगवान् शंकर का। 


तीन सो वीर स्वयंव्र में लाये उसे 

इतना भारी था धनुष वो 

बात ही बात में उठा लिया राम ने 

डोरी चढ़ाई, टुकड़े कर दिए दो। 


जनकपुर में अवतीर्ण हुईं 

लक्ष्मी जी ही सीता के रूप में 

धनुष तोड़ भगवान् राम ने 

प्राप्त कर लिया था उन्हें। 


अयोध्या लौटते समय मार्ग में 

उनकी भेंट हुई परशुराम से 

इक्कीस बार जिन्होंने पृथ्वी को 

रहित किया राजवंश के बीज से। 


भगवान् ने नष्ट कर दिया 

उनके बढे हुए गर्व को 

इसके बाद वनवास स्वीकार किया 

सत्य करने पिता के वचन को। 


वन में रावण की बहन शूर्पणखा को 

विरूप कर दिया उन्होंने क्योंकि 

घमंड, कामवासना के कारण 

कलुषित थी उसकी बुद्धि। 


खर, दूषन, त्रिशरा आदि भाई उसके 

उनको भी वहां नष्ट कर दिया 

सीता के रूप, गुण, सैंदर्य को सुन 

रावण कामवासना से भर गया। 


अद्भुत हरिण के रूप में भेजा 

पर्णकुटी की और मारीच को 

रावण ने सीता का हरण किया जब 

दूर भगवान् को ले गया वो। 


तदनन्तर सीता से विछुड़ कर 

भाई लक्ष्मण को साथ ले 

दीन की भांति घूमने लगे 

मिल गया जटायु रास्ते में। 


जटायु घायल था, दम तोड़ दिया 

दाह संस्कार किया राम ने 

उसके बाद कबंध को मारा 

फिर सुग्रीव और वानरों से मिले। 


बालि का वध किया उन्होंने 

लगवाया पता सीता का वानरों से 

 टेढ़ी नजर डाली समुन्द्र पर 

समुन्द्र तट पर पहुंचकर उन्होंने। 


शरीरधारी बन कर समुन्द्र 

उनके सामने आया, स्तुति की 

कहा कि पुल बांधकर मुझपर 

प्रवेश करें लंका में आप सभी। 


लंका में प्रवेश कर राम की सेना 

भिड़ गयी रावण की सेना से 

रावण की सेना का नाश हो रहा 

आया वो चढ़ पुष्पकविमान में। 


खड़ा हो गया सामने राम के 

इंद्र का सारथि माताली जो 

एक दिव्य रथ ले आया 

राम उसपर विराजमान हो। 


फटकारें रावण को राम और 

वाणों से वध किया उसका 

दैत्यपत्नियाँ विलाप करें तब 

सब की सब जो थीं आयीं वहां। 


शुकदेव जी कहें, परीक्षित 

राम की आज्ञा से विभीषण ने 

स्वजनों की अंत्येष्टि की थी 

सीता को फिर देखा राम ने। 


लंका का राज्य दिया विभीषण को 

एक कल्प की आयु भी दी थी 

चौदह वर्ष पूरे हुए वनवास के 

अपने नगर की फिर यात्रा की थी। 


जब उनको मालूम हुआ कि 

जौ का दलीय ही खाते भरत जी 

पृथ्वी पर ही सोते हैं 

और पहनें वल्कल वस्त्र ही। 


और सुना कि जटाएं बढ़ीं उनकी 

दुखी हुए राम सुनकर सब ये 

जब भरत के पास गए वो 

भरत की आँख से आंसू बहने लगे। 


चरणों पर गिर पड़े भगवान् के 

प्रभु की चरणपादुकाएं वहां रख दीं 

हाथ जोड़ खड़े हो गए 

भगवान् की आँखें भी छलक गयीं। 


राम ने उनको ह्रदय से लगा लिया 

और भगवान् के नेत्र जल से 

स्नान हो गया भरत का 

गुरु, ब्राह्मण भी वहां खड़े थे। 


राम ने उनको नमस्कार किया 

प्रजा ने राम के चरणों में प्रणाम किया 

भरत ने भगवान् की पादुकाएं लीं 

विभीषण ने श्रेष्ठ चंवर लिया। 


सुग्रीव ने पंखा लिया और 

श्वेत छात्र लिया हनुमान ने 

शत्रुघ्न ने धनुष और तरकश 

सोने का खड्ग लिया अंगद ने। 


तीर्थों के जल से भरा जो 

कमंडलु लिया सीता जी ने 

जाम्बवान ने ढाल लिया और 

सभी बैठे पुष्पक विमान में। 


फिर अयोध्या में प्रवेश किया 

माताएं हर्षित हुईं जब पुत्रों को देखा 

वशिष्ठ जी ने गुरुओं के साथ में 

अभिषेक किया फिर रामचंद्र का। 


राजसिंहासन स्वीकारा राम ने 

धर्म से प्रजापालन करें वो 

उस समय का त्रेता युग भी 

सतयुग के समान मालूम हो। 


उनके राज्य में मानसिक चिंता या 

शरीरिक रोग होता न कोई 

यदि कोई मरना न चाहे 

मृत्यु भी नहीं होती थी। 


एक पत्नी का व्रत धारण कर रखा 

उनके चरित्र राजर्षिओं से 

स्वयं उस धर्म का आचरण करते 

सवधर्म की शिक्षा देने के लिए। 


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