श्रीमद्भागवत - १०५ ; भिन्न भिन्न वर्षों का वर्णन
श्रीमद्भागवत - १०५ ; भिन्न भिन्न वर्षों का वर्णन
शुकदेव जी कहें हे राजन
धर्मपुत्र भद्रश्रवा, भद्रशवा वर्ष में
स्तुति करें भगवान वासुदेव की
अपने प्रमुख सेवकों के साथ में।
हयग्रीव संज्ञक प्रियमूर्ति को
ह्रदय में वो स्थापित करके
स्तुति करते वो इस रूप की
इस मंत्र का जाप वो करके।
भद्राशव जी ये कहते हैं
चित को विशुद्ध कर देने वाले
ओंकारस्वरूप भगवान धर्म को
बार बार नमस्कार हम करें।
जगत नश्वर है, विद्वान कहें ये
आत्मज्ञानी भी ऐसा बतलाते
तो भी आप की माया से
लोग मोहित हैं हो जाते।
आप अनादि हैं, आप अकर्ता
माया के आवरण से रहित हैं
तो भी जगत की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय
आप के कर्म माने जाते हैं।
मनुष्य और घोड़े का संयुक्त रूप
विग्रह है ये ही आपका
ऐसे सत्य संकल्प आपको
नमस्कार हूँ मैं करता।
प्रलयकाल में जब दैत्यगणों ने
वेदों को चुरा लिया था
ब्रह्मा जी के कहने पर आपने ही
रसातल से उनको लाकर दिया था।
भगवान् हरिवर्ष खण्ड में
रहते हैं नरसिंह रूप में
प्रह्लाद जी उनकी स्तुति करें वहां
दानव कुल को पवित्र किया जिन्होंने।
मंत्र और स्तोत्र का जप, पाठ करें
कहें श्री नरसिंह देव जी
आपको मेरा नमस्कार है
आप तेज, अग्नि अदि तेजों से भी।
हे वज्रनख, हे वज्रदंष्ट्र
आप हमारे समीप प्रकट हों
हमारी कर्म वासनाओं को जलाइए
अज्ञान अन्धकार को नष्ट करो।
हे नाथ कल्याण करो विश्व का
परस्पर सद्भाव हो प्राणीओं में
दुष्टों की बुद्धि शुद्ध हो
एक दूजे का सब हित चिंतन करें।
मन शुद्ध मार्ग में प्रवृत हो
प्रवेश करें हमारी बुद्धि में
घर, स्त्री, धन में आसक्ति न हो
आसक्ति हो हरि के प्रेमी भक्तों में।
केतुमाल वर्ष में भगवान हरि
निवास करें कामदेव रूप में
प्रजापति संवस्तर के पुत्र पुत्रीयां
और लक्ष्मी जी का प्रिय करने के लिए।
उस वर्ष के अधिपति हैं
प्रजापति के पुत्र पुत्री ही
इन सब की आयु भी है
छत्तीस छतीस हजार वर्ष की।
ये सब लक्ष्मी जी के साथ में
भगवान की आराधना करते
मन्त्र का जाप करते हुए
हरि की स्तुति हैं करते।
आप इन्द्रीओं के नियंता
श्रेष्ट वस्तुओं के आकार हैं
सोलह कलाओं से युक्त आप हैं
आप को हमारा नमस्कार है।
आप सर्वसमर्थ भी हैं और
अधीश्वर आप हैं इन्द्रीओं के
रहस्य कोई भी जान न सके
लीलाएं करें जो आप माया से।
रम्यक वर्ष के जो अधिपति मनु हैं
पूजा करें वो मत्स्य रूप की
भगवन के इसी रूप की उपासना
और स्तुति करें मनु उनकी।
कच्छप रूप धारण करते हैं
प्रभु हिरण्मय वर्ष में
निवासिओं सहित पितृराज अर्यमा
इसी मूर्ती की स्तुति करें।
जो सम्पूर्ण सत्वगुण युक्त हैं
जल में विचरने के कारण जिनका
स्थान का कोई निश्चय नहीं
बार बार नाम जपूँ उनका।
आप असंख्य नामों से युक्त हैं
रूप और आकृतिओं से भी
ऐसे सांख्यसिद्धांत स्वरुप को
नमस्कार करें बार बार सभी।
उत्तरपुरुवर्ष में विराजमान प्रभु
यज्ञ पुरुष वराह मूर्ति रूप में
साक्षात् पृथ्वी देवी वहां
उनकी उपासना, स्तुति करें।
जो यज्ञ और क्रतु रूप हैं
बड़े बड़े यज्ञ जिनके अंग हैं
उन ओंकार स्वरुप वराह को
बार बार मेरा नमस्कार है।
आप जगत के कारणभूत
आदिसूकर हैं इस जग के
आप सर्वशक्तिमान को
प्रसन्न करूं स्तुति ये करके।
