श्रद्धांजलि
श्रद्धांजलि
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आतंकवाद , एक कलंक समाज के लिए ,
संसार व पूरी मानव सभ्यता के लिए ।
प्रत्यक्ष या परोक्ष पीड़ित हैं हम सब
कभी धर्म -जाति, कभी सयासी दावपेच।
मानव प्रवृति जटिल , तुरंत भ्रमित हो जाए
इर्ष्या,द्वेष ,अलगाव अपने रंग दिखा जाए।
परिणाम,अनगिनत मौतें, हर कोई लाचार
किस-किस की बात करें, हर तरफ हाहाकार ।
धरती का स्वर्ग ,अब खून की नदियां बहती हैं
खून खराबा मारकाट साथ लिए चलती हैं ।
किसे कहें ,समझाएं, समझ में न ये बात आए
हाथ आएँ लाशों के ढेर सब बैठे मातम मनाए ।
मात- पिता की आहें ,पत्नी की सूनी मांग
बच्चों की सिसकियां ,बहनों की सूनी आंखें ।
गांव की सूनी गलियाँ मानों नज़रें टिकाएँ
इन दुश्मनों के लिए गूंजे हर तरफ बददुआएँ ।
इंसानियत के दुश्मनों समझ लो यह बात
जब तुम से मरते कफन भी नसीब नहीं होते ।
माँ भारती शहीद को पाने, दोनों जहाँ तरसते
देव तो स्तुति करते, मानव भी सजदा करते ।
भावभीनी श्रद्धांजलि पुलवामा वीरों
शत शत नमन वीर फौजी भाइयों।