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Goldi Mishra

Inspirational

3  

Goldi Mishra

Inspirational

सहरद से परे इश्क़

सहरद से परे इश्क़

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मज़हब के नाम पर मैंने मुल्कों को बटते देखा है,

मैंने इंसान कि आंखों पर बंधी धर्म की पट्टी को देखा है,।।

पढ़ी है गुरुवाणी पढ़ी मैंने कुरान भी है,

पढ़ी है बाईबल पढ़ी मैंने महाभारत भी है,।।

हर धर्म को टटोला,

हर वेद हर पोथी को मैने टटोला,।।

इन्सानियत से बड़ा कोई धर्म ना मिला,

जग में ढूंढा खुदा को वो तो अपने ही अंदर छुपा मिला,।।

मज़हब के नाम पर मैंने मुल्कों को बटते देखा है,

मैंने इंसान कि आंखों पर बंधी धर्म की पट्टी को देखा है,।।

बैर भाव सब इंसान ने बुने है,

धर्म के नाम पर पाखंड के ताने बाने इंसान ने बुने है,।।

भीड़ जिस ओर मुड़ी हम भी उसी ओर मुड़ गए,

क्या सही क्या ग़लत ये सोचना ही भूल गए,।।

बटवारे की कीमत बेकसूरों का लहू थी,

कभी जो एक थे मुल्क आज उनके बीच में सरहद थी,।।

मज़हब के नाम पर मैंने मुल्कों को बटते देखा है,

मैंने इंसान कि आंखों पर बंधी धर्म की पट्टी को देखा है,।।

गीतो की धुन हर सरहद को भूल कर फिज़ा में गूंजी,

खुशबू फूलों की हर बैर को भूल कर फिज़ा में मेहकी,।।

पानी नदी का हर गले की प्यास भूजाता रहा,

हर सरहद भूल वो सूरज भी अपनी रोशनी बांटता रहा,।।

जब कुदरत ने रखा ना कोई बैर,

फिर क्यों मजहब के नाम पर इन्सानियत में बढ़ता है बैर,।।

मज़हब के नाम पर मैंने मुल्कों को बटते देखा है,

मैंने इंसान कि आंखों पर बंधी धर्म की पट्टी को देखा है,।।

अपने दिल के जज्बातों को कोई कैसे दबाए,

है सरहद भी कोई चीज ये बात मोहब्ब्त को कैसे समझाए।।

इश्क मेरा बेड़ियों में बंध ना सका,

लिखे थे खत जो उसके नाम कभी उसे भेज ना सका,।।

वो रहती है सरहद के उस पार,

मेरा ठिकाना है सरहद के इस पार,।।            



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