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Dr Priyank Prakhar

Abstract

4.5  

Dr Priyank Prakhar

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श्मसान घाट

श्मसान घाट

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लोग कहते ये घाट निराले, यहां आते जाने वाले,

दिखते मुर्दे लाने वाले, और हैं मुर्दे सुलगाने वाले,

पड़ी हड्डियां तितर-बितर, फैली राख में इधर-उधर,

जलती हर तरफ चितायें, डालो निगाह यहां जिधर।


देखो मैं भी एक घाट हूं, उसी नदी का एक पाट हूं,

वो सुरम्य पर्यटन हाट हैं, मैं मसान श्मशान घाट हूं,

जो हँसते खिलखिलाते वहां, क्यों रोते मेरे पास हैं,

वहां घूमते खुश मिजाज, यहां रहते क्यों उदास हैं।


वो जीवन की आस हैं, मैं सबके मोक्ष का द्वार हूं,

देखते क्यों मुझे हो दुखित, मैं ही तुम्हारा उद्धार हूं,

वो तो नश्वर संसार हैं, मैं परम सत्य का विस्तार हूं,

जाल वो माया मोह का, मैं अविनाशी रूद्रावतार हूं।


रहते कुछ अघोरी यहां, जिनके लिए विश्व निस्सार है,

उनके लिए मैं ही सार, मुझ में बहती शिवगंगा धार है,

श्मशान की वीभत्सता में, सत्य का नीरव संसार है,

श्मशान हूं मैं मुझ में समाया, जीवन चक्र आधार है।



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