सहमी सी दीवाली है
सहमी सी दीवाली है
सहमी सी दीवाली है,
सहमी सी दीवाली है।
कहीं दीप जले,
कहीं दिल।
कहीं कोई,
हरपल जलता तिल-तिल।
घर द्वार भी,
है खामोश।
यहां किसको,
किसका है होश।
दिया जलता है,
मंदम मंदम।
जाने कब लेगा यह,
अपनी लौ की धुुन।
रौशन रातेेंभी,
सहमी सी नजर आए।
जलती घिर्री, फुलझडियां भी,
सहमी सी नजर आए।
जलेेे है दीप,
अनगिनत यहां।
फिर क्यों न रौशन,
हुआ मन का जहां।
मेल- जोल और,
प्यार- दुुलार।
कहीं न दिखता,
अब भाईचारा।
हंसी ठिठोली,
या शैतानी बच्चों की।
आती है अब,
नजर कहां।
सहमी सी दीवाली है ये
सहमी सी दीवाली है।
