ऐसा है मेरा मन
ऐसा है मेरा मन
जो मैं सोचूं वो कर पाऊं,
सारे जग में उजियारा लाऊं।
हर दिन नव सूरज बन जाऊं ,
छाया जन-जन के सिर पहुंचाऊं।।
नन्ह -मुन्ने हो या बूढ़े ,
सब का मन बहलाऊं मैं।
हंसते -हंसते बल पड़वा दूं ,
इतना उन्हें हंसाओ मैं।।
पर्वत सा ऊँचा हो जाऊँ,
सागर सी गहराई पाऊँ।
सूरज जैसा चमकू मैं,
चंदा सी शीतलता पाऊं।।
पंछी जैसा मैं उड़ जाऊं,
हवा के जैसा हर घर जाऊं।(प्रेमा हाल्सी)
ऐसा निर्मल है मेरा मन,
बस यही मैं चाहूं ,यही मैं चाहूं।।