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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Abstract

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Abstract

सहमी कविता

सहमी कविता

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नहीं भाई

नहीं हमसे

कविता नहीं

लिखी जाएगी


अब तो मौन

रहकर सभी

बात कही

जाएगी


जहाँ भी देखो

हाहाकार

मौत का तांडव

हो रहा है

लोग अपनों

को खोने की

प्रतियोगिता


कर रहा है

कोरोना किस

के सर पे चढ़के

अपना नृत्य

दिखायेगा ?


मिस्टर एक्स

बनके अदृश्य

होकर कब

तक हमें

सताएगा ?


हम सोते है

तो स्वप्नों में भी

कोरोना के

सैनिक दिखते हैं

दिन में भी

उसके साये से

सब लोग यहाँ

पर डरते हैं


क्या देखें क्या

हम सुने यहाँ

सब चेंनेल भी

बेकार बने

असली मुद्दे

को छोड़ यहाँ

हिन्दू मुस्लिम


की बात कहे

कल्पना राग

लय कुंठित

होकर

क्या कविता

हम लिख पाएंगे ?


हम सहमेंगे

लिख ना सकेंगे

कविता का

रूप ना सजा पाएंगे।


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