शीत लहरें...
शीत लहरें...
ठिठुरते ठंडी रातों की
उन कंपकंपी आवाज़ों में
ऊपर आसमां की तरफ
नज़रें गढ़ाए हुए
आप और हम
बेज़ुबान बैठे हुए
कभी आग के चहुंओर,
तो कभी लिहाफ़ या
कभी कंबल ओढ़कर
बस सोने को लालायित
आप और हम
शीत लहरों को सहते-सहते
गहरी नींद में सो जाते हैं...!
गरीब सोता है अपनी झोपड़ी में,
अमीर सोता है अपने आलिशान मकान
के 'वातानुकूल' कमरे में,
मगर हर कोई जूँझता है
शीत लहरों से...
एक कवि लिखते हैं शीत लहरों में
ठिठुरते-ठिठुरते...
एक लेखक लिखते हैं शीत लहरों में
ठिठुरते-ठिठुरते...
एक शिक्षक समझाते हैं शिक्षार्थियों को
शीत लहरों में सावधानी बरतने को...
एक चिकित्सक समझाते हैं मरीज़ों को
शीत लहरों में अपना पूरा ख्याल रखने को...
माँ-बाप अपने संतान को शीत लहरों में
स्वयं को सुरक्षित रखने की बात
बारंबार समझाया करते हैं;
घर के बुजुर्गों का तो
खास ध्यान रखना पड़ता है
इन शीत लहरों में...।
चलिए, हम सब एक-दूसरे को
अपना सहयोग दें
इन शीत लहरों में...!