शीर्षक:तलब मेरी
शीर्षक:तलब मेरी
तलब अब मेरी सिर्फ
खामोशी की...
ख्वाहिश हमेशा रही मेरी
कि हर बात समझ जाओ तुम
अफ़सोस...
पहले था बहुत पर अब नही
हैरत होती हैं
आज भी कि बदल सकते हो तुम भी
दिल मे...
अब तो कुछ भी नहीं रहा
चल दी मैं अब सब कुछ
भुलाकर...
आजाद कर तुम्हे दिल से
कहीं दूर
बहुत दूर तुमसे...!!